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अनुवाद नाटक

सिरीपंचमी का सगुन

जान चिन्हार
सिंघाय कहारः- किसान
माधोः- सिंघाय कहार का बेटा
जसोदा:- सिंघाय कहार की घरवाली
कालू कमार:- एक लोहार
कमला:- कालू कमार की घरवाली
गंॅजेड़ियाः- बूढ़ा रेलवे मिस्त्री
धतुरियाः- जवान रेलवे मिस्त्री
कोटवारः- हांॅका लगोइया
हरखूः- गांॅव का किसान
मनखे 1,2,3,4,5,ः- सभी किसान
गांॅजा, बिड़ी, सिगरेट और शराब पीना स्वास्थ्य बर हानिहारक हावय।
दिरिस्यः 1
ठौर:- सिंघाय के घर
अनमना मन ले सिंघाय आथे, कौंआ बोलथे- कांव कांव
सिंघायः- असुभ, असगुन बोली कौंआ के, टेड़गा फाल, टेड़गा भाग।
माधोः- ददा आगिस, ददा आगिस, सबले पहिली मोर ददा आगिस, मोर बर नानकुन रांॅपा बनवाय ददा, देखों काहांॅ हावय मोर रांॅपा।
सिंघाय अंगना के बरत चुल्हा मा फाल ला फेंक देथे, हा हा करत जसोदा आथे।
जसोदा:- तोर मति मारा गिस हे का? का होगिस हे तोला?ऐन सिरीपंचमी के दिन फाल ला कोन्हों चुल्हा मा फेंकथे?
सिंघाय:- ठीक करेे हों। फालेच ला नीही, आभी नागर ला घलो चूंॅद के।
जसोदाः- चुपे रहा, अलच्छन कुलच्छन बात ला जुबान मा झन लावा। का होइस हे, बोलत काबर नी आ?
सिंघाय:- इसने खेती बारी के।
माधो रोवत हवय, माधो बबुआ, एती आ, रो झन।
जसोदाः- बबुआ ला चुप परात हावस अउ खुदे कलपत हावस,बोलत काबर नीअस, माधो के बापू, बोलत काबर नीअस।
सिंघायः- आप हामन खेती नी करन, माधो के दई,मैंहर तय करे हावौं, आज कालू कमार हर दस झिन के आघू मा मोला बेपानी कर दिस, फाल टेड़गा कर दिस।
जसोदाः- फाल टेड़गा कर दिस?
सिंघायः- दस डेढ़े पंदरा मन धान मैंहर नी दे हवौं, तेकर सेती, अउ दिहां काहांॅ ले पंदरा मन धान, बाप रे।
जसोदा बांॅस के पोंगी से फाल ला निकालत हे।
जसोदाः- खैन धान के बात नी होइस, असल कारन मैंहर जानत हवौं, ओ दिन कालू के घरवाली कमला हर हामर खेत ले एक बोझा कुसियार चूंॅद के ले जात रिहिस, मोर ले गरमा गरम बतकही हो गिस, लइका बर, एक डांॅग नीही चार डाॅंग कुसियार ले जाथिस, कोनहों बात नी रिहिस? फेर बोझाभर कुसियार, बिना पूछे चूंॅद के, ता फेर का कहा जाय, कड़कके कुसियार फेंक दिस, ओई दिन मैंहर समझे रेहें ओ पतलजीभी ला।
सिंघाय:- कब ? कोन दिन?
जसोदा:- इ पांॅच सात दिन होइस हावय।
सिंघायः- तैंहर मोला केहे काबर नीही? अउ कुसियार ला का करे? काहांॅ दे आय?
जसोदा हुक्का बर चिलम बनाय बर लागिस।
जसोदाः- चिलम मा माखुर डारत, — केहे के का बात रिहिस, मइलोग मन मा इसने झगरा होवत रइथे, कुसियार ला मैंहर हाट मा बेंच दें।
सिंघायः- सिरीपंचमी के पहिली काबर झगरा करे बेकार, आप इ टेड़गा फाल ले सिरीपंचमी के नांगर कइसे ठाढ़ करबो।
जसोदाः- जान बूझके झगरा मोल लेय बर आय रिहिस, कालू के घरवाली, ओकर पेट मा बड़ पहिली ले बदमासी पलत रिहिस, आप समझे असल कारन।
सिंघायः- असल कारन, मईलोग मनला सबो कारन मालूम हो जाथे सबा ले पहिली, माधो बबुआ!
जसोदाः- आप ता गलती हो गिस।
सिंघायः- उदास झन हो माधो के दाई।
जसोदाः- उदास नी होवत हों सोचत हावौं, रूकजा।
सिंघाय:- आज सिरीपंचमी के दिन कोन खाही, परेवा काबर निकालत हस माधो के दाई।
जसोदाः- सबर करा, भगवान हर चाही ता, खिचड़ी के पानी उतार दों या फेर तैंहर रांॅधबे।
सिंघाय:- तैंहर जात काहांॅ हस?
जसोदा आधा सेर गोरस, सेर भर अरवा चउर, मंूंॅग के दार धरिस।
सिंघाय:- काहांॅ जात हावस, हाट मा, कहत हवौं, दुनिया के कोन्हों नही छुअय तोर टेड़गा फाल।
जसोदाः- माधो के ददा, तैंहर बइला मनला धो, मैं आभी आत हवौं, पाव कोस भ्ंिांया जात जात जतका बेरा लागिही।
जसोदा चल देथे
सिंघाय:- काहांॅ गिस, भगवान जाने!
माधोः- दई मोर बर रांपा लेबर गिस हावय।
दिरिस्य:2
ठौर:- लुहार सार
कालू कमार फाल बनात हावय, चार पांॅच मइनसे अउ बइठे हवे, एकठन फाल ला जानबूझ के टेड़गा करदिस।
सिंघायः- अच्छा, तैंहर मोर फाल ला टेड़गा कर दे, कालू
कालू कमारः- ता का करथें? ता का करथें? एक नीही दू नीही, पूरा पांॅच साल के खैन बांॅचे हावय, न अगहनी फसल मा ऐ चुटकी धान अउ न रबी फसल मा एक मुट्ठी चना, खैन खातिर कछेरी मा नालिस करे बर तो नी जांॅव, का करथे?
सिंघाय:- ऐन सिरीपंचमी के दिन।
कालू कमार:- ऐन केन बतकही पंचइती बुलाके करबे, सिंघाय, बइठे हवे इहांॅ जुआर भर ले किसान, छोटे बड़े। इमन मेर बिचार कराव।
फाल ला टोकरी मा धर के चल देथे।
सबोझन:- मियाद के घलो एक ठन हद होवत हवय।
दिरिस्य: 3
ठौर:- रेलवे पुल के तीर
जसोदा ले कहानी सुन के गंजेड़िया कइथे।
गंजेड़ियाः- सिरीपंचमी के सगुन लेके आय हस, माधो के दाई।
धतुरियाः- एमा सोचे बिचारे के का बात हवय, मास्टर, पीट देवा फाल।
गंजेड़ियाः- पाछू कोन्हों झंझट करिही गांववाला मन ता।
धतुरिया:- तहूंॅ घलो किसे गोठियाथा मास्टर! रेलवही के हद मा कोन झंझट करे आही, तेमा देहात के मनखे।
गंजेड़ियाः- जसोदा ला देख के मनेमन सोचत हवय- दुपहरिया फूल! बढ़िया बात! बइठ, बइठ आराम ले बइठ।
जसोदाः- जरा जल्दी मिस्त्री जी, सगुन के बेरा मा आप देर नीए।
गंजेड़ियाः- काहांॅ हे टेड़गा फाल?
जसोदा टेड़गा फाल ला देथे, गंजेड़िया ओला आगि मा डारथे, लाली होय के पाछू हेरथे,
धतुरियाः- सौ चोट लुहार के ता एक चोट सरकार के।
लाली टेड़गा फाल ला हेरके निहाई मा राखथे, ठनांग ठनांग ठनांग
जसोदा के मुड़ी के ओनढा घरि घरि सरक जाथे, फाल के पाछू भोथरी रांपा हेरथे।
धतुरियाः- ओनढा मा लुकाके अउ का का राखे हावय, न जाने अउ का का।
जसोदाः- लजात- बस इच रांपा हवय, अउ एकठन नानकन रांपा बना देथा ता, हंॅसिया ला मैंहर सिल मा टें लिंहा।
गंजेड़ियाः- बना दे धतुरिया, बना दे जो जो कहत हे सबो बना दे, रांपा के बेंट हामर मेर नी बनही।
धतुरियाः- अहू हर हो जाही, बड़खा बाकस मा कतकाकन जुन्ना बेंट हावय, धरा दिंहा।
गंजेड़ियाः- गांजा के दम लगात- धरा दे, धरा दे, तैंहर छांॅय मा बइठ गोरसवाली, बना दिही सबो ला, बना दे रे धतुरिया।
सबो बनाय के पाछू जसोदा कइथे।
जसोदाः- काल ले सिरीपंचमी के परसाद दिहां, केला अधपक्का हावय घर मा, गरीब हावन हामन।
गंजेड़िया:- कोन अमीर हे कोन गरीब हे, तोर गोसैंया भला गरीब हे, बस दस दिन हामन इहांॅ रबो, चाय बर पाव भर गोरस लागथे, परदेसी हन।
जसोदाः- पाव भर काबर, रोज मैंहर आधा सेर दे दिहांॅ।
धतुरिया बीड़ी छपचात, जसोदा के आघू मा एकठन बीड़ी फेंक दिस।
ज्सोदा:- मैंहर बीड़ी माखुर नी पीयों भइददा।
जसोदा जात हवय, गंजेड़िया ओला देखत हवय।
दिरिस्य:4
ठौरः- सिंघाय के घर
सिंघाय कंबल ओढ़ के सूतत हावय, पिंवरा धोती पहिर के माधो घुमत हवय।
जसोदाः- बबुआ तोर रांपा।
माधो खुस हो जाथे अउ आपन ददा ला बतात हवय।
माधोः- ददा, जल्दी बइलामला धो, दाई फाल ला सिद्धा करवा लीस हवय,
तोर रांपा मा घलो अंगरेजी बेंट हावय।
सिंघाय:- ऐं! माधो अउ रांपा ला छू के देखथे,- अरे माधो के दाई।
जसोदाः- इसने नींद हे तुंॅहर, अउ इसने का देखत हावस।
सिंघाय हड़बड़ात उठिस, जसोदा अंचरा मा लुकाय टोकरी आघू मा कर दिस।
सिंघाय:- फाल, अरे वाह, इसने धार, अउ ये तोर हंॅसिया, अउ मोर रांॅपा मा अंगरेजी बेट, माधो के दाई, अब आप का कहों, सचमुच तैंहर जादू जानथस।
जसोदाः- रहन दा, घंटा भर मा पांच घ मिजाज बदलथे मरद के, तुरत आंॅखि लालि करके लाठी चलात लाज अउ न दांत निपोरत , दूम हिलात लाज, गांव के मन नागर-बइला धर के निकलत हवय अउ तूंॅ सूतत हावा।
सिंघाय:- तियार होत हों तुरत।
दिरिस्यः 5
ठौर:- भांठा भिंया
कोटवारः- चला– चला– नांगर धरा चला— ए ए ए–हो –ओ ओ ओ —
गांव के जुन्ना रीत हवय, का बारा नांगर जोतोइया बड़खा अउ का एक नांगर जोतोइया छोटे, सबो किसान एक संग नांगर ठाढं करिही।
मनखे1ः- नंगरिहा सबो आगिन, सिंघाय ला छांॅड़के।
मनखे2ः- सिंघाय ला छूटेच समझा।
मनखे3ः- आवत हे, सिंघाय घलो आवत हे।
मनखे4ः- टेड़गा फाल ले सिरीपंचमी करही, टेड़गा फाल ले।
सिंघायः- खांॅध ले नांगर ला उतार के- भगवान के नजर टेड़गी झन होय, फेर फाल ता फाल, सिंघाय के बाल ला घलो टेड़गा नी करे सके कोन्हों।
मनखे1ः- सिरतोच, फाल घलो सिद्धा हावे अउ रांपा के बेंट, बेंट मा पालिस हे, ओकर बेटा के रांपा हर तो अउ फेंसी हवय, लाली बेट, अंगरेजी बेंट।
सिंघाय:- अंगरेजी नीही, जरमनियांॅ, पूजा के पहिली कोन्हों झन छुआ भई, हामन गरीब मनखे काहांॅ ले अंगरेजी बेंट लाबो।
जसोदाः- पूजा करे बर बइठे हावा ता, पूजा करा, अंगरेजी फारसी पीछू छांॅटिहा।
सिंघाय हर पूजा करिस, नांगर जोते के पाछू, जसोदा अठन्नी अउ आमा पान बांधिस, जसोदा अठन्नी साही चमकत हावय, सिरीपंचमी की रात मा होरी गात सिंघाय के ढेंटू में सबो ले जादा रस हवय।
दिरिस्यः6
ठौरः- गांॅव के खोर
मनखे1ः- सगुन सुभ कइसे होइस?
मनखे2ः- माधो के दाई मा नवा चोली बिसाय हवय।
मनखे3ः- माधो के कुरता बाघ छाप कपड़ा के हवय।
मनखे4ः- माधो के दाई चार घंटा ले बइठे रइथे, मिस्त्री मन करा।
मनखे1ः- जेहर बिगड़े सगुन सुभ करिस, ओकर मन राखे बर परे होही।
मनखे2ः- आधा सेर गोरस के दाम तीन घंटा मा मिलथे का? सिंघाय बेखबर हवय।
मनखे3ः- कड़ा पानी के फाल हावे ओकर हर, खूबेच गहियर जोतथे।
मनखे4ः- खेत मा कड़ा होय ले का? घर मा तो माटी के लोंदा होत हवय सिंघाय।
दिरिस्यः 7
ठौरः- लुहारसार
कालू कमारः- आप तो इ गांव मईलोग मन फाल पिटवायबर जात हावय। रेलवे के लुहार के इहांॅ।
मनखे5ः- मइलोग मला झन कहा, एकझन के चलते सबोझन ला बदनाम झन करा, सबो के मईलोग मन हाट बाजार मा सौदा बेचत बिसात हावय, अकारन कोन्हों ला दोख झन देवा, सिंघाय ले कुछू ले दे के निपटारा कर लेवा कालू।
कालू कमार कलेचुप लोहा ला लाली करत हवय।
दिरिस्य:8
ठौरः- खेत के पार
सिंघायः- कुकुर साला! नी देखत हस, मोर खेत मा तोर बइला चरत हवय।
हरखूः- सिंघाय जरा धीरे बोल, जान बूझ के मैंहर, तोर खेत मा नी छांॅड़े हावों, जनावर हे हारा चारा के लालच लगीस होही तरी मा उतर गिस।
सिंघायः- पर तैंहर का करत रेहे रे कुकुर साला।
हरखूः- चुप रह सिंघाय, ये रेलवे के गरमी बड़ देर नही रहय तोर।
रेलवे के गरमी सुन के सिंघाय कठवा साही हो गिस, ओकर बात ओकर दिल मा लग गिस।
दिरिस्य:9
ठौर:- सिंघाय के घर
जसोदाः- सिरीपंचमी के सगुन तो होगिस, एकोदिन मिसतरी मन ले भेंट कर आथे।
आजेच कहत रिहिन मिसतरीमन।
सिंघाय:- आज अबेर मा खैनी तमाखू देबर हवय मिसतरी मला।
जसोदाः- आप अबेर कुबेर के मैंहर तो नी जांव खैनी तमाखू लेके।
सिंघाय:- आज मंॅइच हर जात हवौं, देखंव तोर रेलवे मिसतरी मनला।
हरखू के बात ठीक हवय की तोर, आजेच देखे बर हवय, माधो काहांॅ गिस हे, तैंहर आज उदास काबर हस माधो के दाई, एती सुन तो जरा।
जसोदा मुचमुचाथे।
दिरिस्य:10
ठौरः रेलवे पुल के तीर
सिंघायः- राम राम मिसतरीजी, मैंहर माधो के ददा हावों।
गंजेड़ियाः- राम राम , माधो के ददा।
धतुरियाः- गोरसवाली के घरगोसैंया?
गंजेड़ियाः- ओ ओ, गोरसवाली के घरगोसैंया? टेड़गा फालवाला। बइठा बइठा का नांव हे तोर।
सिंघाय:- मोर नांव सिंघाय कहार हवय।
गंजेड़ियाः- ओ ओ, पर सिंग रहत घलो, ओ ओ, कहार न हो, तोर गांव के कमार के का नांव हे, कालू कमार, ओ ओ, बस एके लइका, पहिला बेटवा, ओ ओ, भैंसिन तोर दुधारी हावय, दू सेर दूध देथे, ओ ओ, कुसियार के घलो खेती करथा।
सिंघायः- मनेमन- बड़ रसिया हवय, डोकरा मिसतरी हर, गोरसवाली।
चाहा पिलाथें, सिंघाय पहिली घ चाहा पिअत हे, पहिली पीते पिअत हांेठ हर जर जाथे। दूनों हांसथे।
गंजेड़ियाः- ओ ओ, फूंॅक के पिया, देखत हवौं तोर ले हुसियार तोर गोसानिन हर हावय।
तीनों झन गांजा पीथे।
सिंघायः- हामन सधारन किसान नी होवन, राज कहार अन, हामर पुरखा मन राजा रानी ला ढोंय डोली मा, मैंहर आइ साल ले अखाड़ा के माटी ला मोर देंहे मा पचोय हवौं, भैंसिन के गोरस–।
गंजेड़ियाः- ओ ओ, बड़खा बड़खा अखाड़ा के पहलवान घलो मईलोगन के फेर मा परके, एक साल मा चित पर जाथे, समझे, मईलोग का हवय लोहा ला गला देथे।
धतुरियाः- भैंसिन के गोरस अउ अखाड़ा के माटी के मुंॅहूजबानी बयान खूब सुनेन, दू हथोड़ा चलाहा ता जानबो।
सिंघाय मुड़ी मा पागा बांध के हथोडा चलाय बर लागिस।
गंजेड़ियाः- ओ ओ, संभाल के ए ए ए।
धतुरिया के हाथ ले संड़सी सहित लोहा छूटके छिटक जाथे, बाल बाल बांचथे सिंघाय के जवनी गोड़।
गंजेड़ियाः- ओ ओ, ऐसी देह वाले का फाल टेड़गा कर देत हवय, गांव के कमार लुहार, का धरिस हवय, गांव मा, सहर मा तोर जइसने मनखे कमा के साल मा मगरमस्त हो जाथे। हामर साहब अबड़ बढ़िया मनखे हावंे, ओकर तोर जइसने बड़ जवान मला नौकरी दिलाय हवय, तैंहर गांव मा आपन हाड़ा बेकार गंवात हावस, तैंहर सोच बिचार के देख, घर बाहिर मिलाकर राय बात करे।
सिंघायः- कइसने राय बात, गांव छांॅड़े के, माधो के दाई ले, सहर जाय के बात घर मा सुनाके घर मा झगरा कोन मोल लेय, एक तो मोर गोसानिन, सहर अउ सहरवाला मन ले चिढ़े रइथे। दूसर हामन ठहरेन गांव गंवई के मनखे, खेत कोठार मा बेकार परे रइबो ता कोन्हों बात नीए, सहर मा तो–।
धतुरियाः- तोर गोसानिन तो कहत रिहिस, गांव ले बाहिर नी जाय मोर गोसैंया।
सिंघायः- सहर के आदमी के का परतीत, हांॅस हांॅस के बात करिही, करेजा भीतर हाथ धरिही, गांव के बहू बेटी का जाने?
गंजेड़ियाः- ओ ओ गोरसवाली।
सिंघायः- गोरसवाली झन कहा, बड़ खीख लागथे सुने मा।
सिंघाय घर लहुंॅटत राम राम कहे बर भूला गिस।
धतुरियाः- काल ले जल्दी भेज देबे गोरस लेके।
सिंघायः- कल गोरस नी होय।
दिरिस्य: 11
ठौर:- लुहारसाय
कालू कमार काम करत हावय, सिंघाय कहार आथे।
कालू कमार:- मैंहर घलो तोर मेर मिलके बात करे बर चाहत रेंहे। फेर तोर घर के बोहो हर कुसियार छीन के बेपानी कर दिस मोर गोसानिन ला। नीही ता तइंच कह, कभू खैन के तकाजा करे हवौं।
कमलाः- अहा हा, सिंघाय ला दोख झन देवा कोन्हों, मनखे नीही मिसरीकंद हे, फेर आप जान द का कहों, कतक झन कतक बात करथें, रेलवे मिसतरी मन के का ठिकाना।
कालू कमार:- फेर एक लइकावाली मइलोग, डोकरी नीही। जवान जहान के मति हवय आभी, फेर तोर गोसानिन तो लछमी हवय, लछमी।
कमलाः- लछमी सिंघाय ल लेके सहर उड़े बर कल कांटा ठीक करोइया बोहो।
कमला जाथे।
सिंघाय:- एकठन बात हावय, आपन लइका के सपथ खा के कहत हवौं, काकरो सो नी कइबे, रेलवे के बात हवय, इकरे खातिर थोरकुन डरात हवौं, पुल के तरी पानी मा लोहे के नान नान टूटे ला डाल देथे काम करत करत।
कालू कमार:- काहांॅ पुल के तरी, पानी मा, जरूर वो लोहा हाट के लुहार के पेट मा जाही, कब तक काम चलही इहें।
सिंघायः- बस काल तक। रात के वोमन माइल घर मा चल देथें। मोर बर एक ठन टंगिया बना देबे कालू भईददा।
कालू कमारः- एकठन टंगिया, चल पहिली कुछू खा पी ले, फेर बात करबे।
कमला खाना परोसथे।
कमला:- तोर ले खैन धान कोन मांॅगत हवय, हमनला हिरदे के भूख हवय।
दिरिस्य: 12
ठौर:- लोहार सार
रेलवे ले दुनों लोहा चोरी कर घर लाथंे।
कालू कमार:- तैंहर हथौड़ा चला देबे ता चार भाग मा एक भाग तोर हो जाही, लकरी के बूता मा मोर दुनों लइका के देंहे खराब होगे हे, चार हथौड़ा नी पीट सकें, कोयला मोर घर मा बड़ हवय।
सिंघाय मान गिस, दुनों बूता करे लागिन।
कालू कमार:- वाह सिंघाय भई, आप आज रहन दे, बिहान पहा गिस, तोर गोसानिन सिरतोच लछमी हावय, ओहर का जतन ले तोर देहे ला पालीस हावय, इहांॅ तो साली–।
सिंघाय:- चिलम तियार करत- का बिहनिया मइलोगमन के बात लेके सुरू कर दे, घटरमेन!
कालू कमार:- नीही सिंघाय भईददा, मईलोगमन के बात मा परके मैंहर तोर सो मनमुटाव कर लें, अउ मइलोग हर तोर बिगड़े सगुन ला सुधार दिस, मइलोग मइलोग के बात हवय।
सिंघायः- पहिली अंदाज बताव कि कतका हिसाब बनिही?
कालू कमार:- तैंहर निस्चिन्त होके आप जा घर, आराम कर, तोर गोसानिन रात भर नी सूते होही।
दिरिस्य:13
ठौर:- सिंघाय के घर
सिंघाय आथे, जसोदा सूतत हवाय, जगाथे।
जसोदाः- हे भगवान! खूब हस तैंहर, संझा के तारा उगे ले बिहनिया के तारा के बूड़े तक टकटकी लगाय बइठे हवौं, माधो भूख मरत सुत गिस, काहांॅ रहा माधो के ददा रतिहा भर।
माधोः- सपनात हवय – मोर रांपा कोन्हों झन लिहा।
सिंघाय:- चुप रे।
जसोदाः- तोर देंहे ले लोहाइन गंध आत हावय, गोड़ मा जिहां तिहां खोमचाय हवय, हाथ हे राम, हाथ मा अतका फोरा कइसे हावय।
कुकरा बासिस, सिंघाय के नाक बाजिस।
दिरिस्य: 14
ठौर:- सिंघाय के घर
सिंघायः- माधो के दई, बइठ, तोर जी गांव मा नी लागत हवय, सहर जाय बर चाहत हस, बोल इहांॅ का धरिस हवय? कह ना सबो कुछू?
जसोदाः- का होगिस तोला, कह ना, कइसने अलच्छन भरे बात करत हावा, सहर जाय बर रथिस ता सिरीपंचमी के सगुन काबर? मोला का लक्का परेवा समझत हावा, उढ़ियाय बर छटपटात हवय जी मोर, माधो के ददा, इसने मोर कोति झन देखा आप, सच कहत हावों सिल मा माथा कूट के मर जाहांॅ मैंहर, मोला चार लाठी मार लेवा, फेर इसने बात झन करा।
सिंघायः- हांॅस के – कालू तोला ठीक जानिस हावय।
जसोदा:- दूसरमन के बात मा परके–।
सिंघाय जसोदा के गरदन ला धरके झिंझोड़िस, जसोदा के चूंदी बिछागिस।
सिंघायः- मोर का आपन आंखी नीए बही, एती सुन तो–।
सिंघाय जसोदा के मुंॅहू ला निहारत रहय।
जसोदा:- छिः माधो के ददा, का होगिस तुंहला, रोत काबर हावा?
माधो रांपा ले तुलसी के एकठन बिरवा उखान लानिस हावय।
माधो के ददा, एती देखा, माधो ला देख के कहा, आप कभू इसने काम नी करों, तैंहर सोच, तैंहर बने करे हस।
सिंघायः- तैंहर फेर बिहनिया, गोरस देबर गे रेहे पुलिया के तीर।
जसोदाः- हांॅ गे रेंहे, उहांॅ कोन गोरस लेथिस आज, दुनों मिसतरी के मूंॅहू सुखाय रिहिस, मोला डोकरा मिसतरी हर पूछिस, कालू कमार ले तोर गोसैंया के मेल होगिस का?
सिंघायः- तैंहर का कहे?
जसोदा:- मैंहर का जानो?
सिंघायः-ओ ओ।
जसोदाः- फेर तोला बताय बर परही, बोला फेर इ रस्दा मा गोड़ झन धरिहा, माधो के ददा।
सिंघाय हर तुलसी के बिरवा हाथ मा लिस, माधो ला कोरा मा लेके किहिस।
सिंघायः- बबुआ, तैंहर फाल रांपा छांॅड़, सिलेट पिसिल धर, हामन बइला सही रेहेन, बइला के बुद्धि।
माधो:- आज तुलसी ला जगान दे पहिली ददा।

सिरीपंचमी के सगुन – फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी से
एकांकी रूपान्तरण- सीताराम पटेल