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सोनाखान के सोन: शहीद बीर नारायण सिंह

शहीद बीर नारायण सिंह ह छत्तीसगढ़ के पहिली शहीद आय। 10 सिदम्बर 1857 म अत्याचारी अंगरेज मन बीर नारायण सिंह ल फांसी दे दे रिहिन। ओखर अपराध अतेक रिहिस के सन् 1856 के भयंकर दुकाल के समे वो ह अपन जमींदारी के भूख से तड़फत जनता बर एक झन बैपारी के अनाज गोदाम के तारा टोर के उहां भराय अनाज ल जनता म बांट दे रिहिस। अतके नहीं ये बात के जानकारी लगिहांत वो समै के रइपुर के डिप्टी कमिश्नर ल घलो पठो दे रिहिस के ये काम वोला भूख म तड़फत जनता के भूख मिटाय खातिर करना परिस। फेर अंगरेज कमिश्नर ल ओखर मानवता अउ ईमानदारी नइ भाइस। वोला तो वो जमाखोरी बैपारी के सिकायत म नारायण सिंह ऊपर कार्रवाही करना पसंद आइस। अउ इही बात म डिप्टी कमिश्नर ह बीर नारायण सिंह बर गिरफ्तारी वारंट निकाल दिस। वो अत्याचारी डिप्टी कमिश्नर के नांव एलियट (चार्ल्स एलियट) रिहिस। तेखरे पाय के कतको झिन जुन्ना छत्तीसगढ़िया मइनखे के एलियट नाव घलो सुने म मिल जाथे। खैर हमला नामकरन म धियान नइ दे के शहीद बीर नारायण सिंह के किस्सा कोती धियान देना हे।
तौ ये बीर नारायण सिंग के जनम सोनाखान के जमींदार रामसाय बिंझवार राजपूत के घर सन् 1795 ई. के कोनो तारीख म होय रिहिस। तारीख के पक्का जानकारी नइ मिलय। अपन बाप के इंतताकल के बाद 35 बछर के उमर म नारायण सिंह सोनाखान के जमींदार बनिस। उन बड़ धारमिक, गियानी, मिलनसार अउ परोपकारी परबृत्ति के रहिन। एखरे संगेसंग उंखर म धीरज, साहस अउ प्रजापालक के गुन घलो लबालब भरे रिहिस। वो ह निच्चट सादा जीवन बिताय। वो ह महल अटारी म न हि भलुक माटी अउ बांस के बने कच्चा मकान म राहय अउ अपन परजा के तकलीफ ल दूर करे म हरदम तियार राहय। सोनाखान के राजा सागर, रानी सागर अउ नंद सागर तलाब आजो ओखर जनकल्यानकारी सोंच के गवाही देथे।
नारायण सिंह अपन जमींदारी ल बड़ सुग्घर ढंग ले चलाय के बेवस्था करे राहय। इही बीच सन् 1854 ई. म अंगरेज मन नागपुर के संगे संग छत्तीसगढ़ ल घलो अंगरेजी राज म मिला लिन अउ लगान लेना सुरू कर दिन। लगान ल वो समै टिकोली काहय। ये टिकोली के नारायण सिंह जबर विरोध करिस। इही पाय के रइपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट ह नारायण सिंह से चिढ़े राहय अउ वोला डांडे के मउका खोजत राहय। सन् 1856 के अंकाल म इलियट ल ये मउका घला मिल गे। वो बछर छत्तीसगढ़ म सुक्खा दुकाल परगे। लोगन दाना-दाना बर मोहताज हो गे। एक गांव के माखन नांव के बैपारी ह अपन गोदाम म अनाज ल जमा करके राखे राहय। ये बात नारायण सिंह ल सहन नई होइस। बैपारी जात, सोझबाय त मानतिस नहीं। आपद धरम निभाय बर नारायण सिंह वो गोदाम के तारा टोर के अनाज ल जनता म बंटवा दिस। लगिहांत ये बात के जानकारी डिप्टी कमिश्नर इलियट कर घलो पठो दिस अउ बैपारी ल सही समै म भरती देय के वादा घलो करिस। फेर बैपारी ल संतोस नइ होइस। एती इलियट ल तो मउका के तलास रिहिस काबर के नारायण सिंह राजनैतिक चेतना, जागरूकता अउ अंगरेजी सत्ता के बिरोध ह अंगरेज अधिकारी मन बर चुनौती बन गे रिहिस। माखन बनिया के सिकायत ह बहाना बन गे। बीर नारायण सिंह बर गिरफ्तारी वारंट निकाल दे गिस। 24 अक्टूबर 1856 के दिन संबलपुर म बीर नारायण सिंह ल गिरफ्तार करके रइपुर के जल म धांध दे गिस। ओखर ऊपरचोरी अउ डकैती के मुकदमा चलाय गिस। असहाय जनता के दुख-तकलीफ से उनला कोनो मतलब नइ रिहिस।
फेर वाह रे बीर नारायण सिंह 28 अगस्त 1857 के बीर नारायण सिंह जेल से भागे म सफल होगे। सन 1897 म देस म क्रांति के वाला भड़क गे रिहिस। जेखर आंच छत्तीसगढ़ म घलो पहुंचिस। छत्तीसगढ़ के जनता मन एकसुर म जेल म बंद बीर नारायण सिंह ल अपन नेता चुन लिन। बियाकुल सोनाखान के जनता अपन नेता ल छोड़ाय बर छटपटात राहय। वो समै संबलपुर म सुरेन्द्र साय नांव के एक झिन क्रांतिकारी नेता रिहिस जउन हाले म हजारी बाग जेल से भागे म सफल होय रिहिस। सोनाखान के जनता मन ओखरे मदद ले के बीर नारायण सिंह ल रइपुर जेल ले भागे के उपाय करिन। जेल म सुरंग बनाके बीर नारायण सिंह भाग गे। बीर नारायण सिंह के जेल ले भागे से अंगरेज अधिकारी मन के हौस गायब हो गे। इन्क्वायरी सुरू कर दे गिस अउ वोला दुबारा पकड़े बर सेना के सहायता लेय गिस। वो जमाना म बीर नारायण सिंह ल पकड़वाय बर 1000 रुपए इनाम के घोसना करे गे रिहिस, जउन आज के लाखों रुपिया के बरोबर होथे। एती नारायण सिंह ल पकडे बर लेफ्टीनेंट स्मिथ अउ लेफ्टीनेंट स्थिम अउ लेफ्टीनेंट नेपीयर ल मकान संउप दे गिस।
नारायण सिंह जेल से भागे के बाद चुपचाप बइठे के बजाय अंगरेजी सत्ता से सोझ मुकाबला करे के अयलान कर दिस। सोनाखान के आदिवासी अपन नेता के वापसी से खुस हो गे राहय। 500 बंदूकधारी सेना खड़ा करे म नारायण सिंह ल कांही दिक्कत नइ आइस। वो समै के अऊ बाकी जमींदार मन अंगरेज के पिछलग्गू रहिन। कटगी, भटगांव, बिलाईगढ़ अउ देवरी के जमींदासर मन अंगरेज मन के साथ दीन। देवरी के जमींदार अउ नारायण सिंह के बीच तो खानदानी दुस्मनी रिहिस। उंखरे मदद अउ रद्दा देखाय से 26 नवम्बर 1857 के स्मिथ अपन सेना संग ारायण सिंह के इलाका म पहुंचे म सफल हो गे। उंहा वोला मालूम परिस के नारायण सिंह अपन संग 500 सैनिक जोर डारे हे अउ वोहा अंगरेज सेना संग जोरदार मुकाबला करे बर तइयार बइठे हे। तभे एक झिन घरभेदिया ह स्मिथ ल बताइस के नारायण सिंह सोनाखान के नाकाबंदी म लगे हे फेर वो काम पूरा नइ होय हे अउ सोनाखान म खुसरे जा सकथे। देवरी अउ सिवरीनरायेन के जमींदार मन गद्दार निकलिस। उंखरे सहायता ले स्मिथ 1 दिसम्बर 1857 के सोनाखान बर धावा बोल दिस। नारायण सिंह घलो तइयार रिहिस। ओखर सैनिक मन स्मिथ के सेना ऊपर बंदूक से हमला कर दिन। एखर बावजूद स्मिथ अपन सेना सहित सोनाखान पहुंचे म सफल हो गे।
सोनाखान गांव ल नारायण सिंह खाली करवा दे रिहिस। बग्याय स्मिथ ह खाली गांव म आगी लगवा दिस। सरी गांव भंगर-भंगर जर के राख हो गे। नारायण सिंह अइसन तबाही हो जही कही के नइ सोंचे रिहिस। एती स्मिथ ल अउ उपराहा सेना मिल गे ओखर मदद ले स्मिथ वो पहाड़ी ल घेर लिस जिहां नारायण सिंह अपन साथी संग मौजूद राहय। दूनों डहर ले मुकाबला होय लगिस। स्मिथ के सेना जादा रिहिस, ाीरे-धीरे नारायण सिंह कमजोरपड़त गिस। आखिर म गद्दा मन के मदद ले नारायण सिंह के आनदोलन ल मटियामेट कर दे गिस। 2 दिसम्बर के बीर नारायण सिंह गिरंफ्तार होगे। 5 दिसम्बर के वोला रइपुर के डिप्टी कमिश्नर इलियट के हवाले कर दे गिस। बीर नारायण सिंह ऊपर देसद्रोह के मुकदमा चलाके फांसी के सजा सुना दे गिस। 10 दिसम्बर 1857 के बिहन्चे फांसी के सजा तामील कर दे गिस। बीर नारायण सिंह देस के आजादी खातिर शहीद हो गे। जेन जघा बीर नारायण सिंह ल फांसी दे गिस तेन उही जघा आय जेला आज हम रइपुर के जय स्तंभ चौक के नांव ले जानथन। इहां सुरता करे जा सकथे सन् 1857 म भारत के आजादी खातिर पहिली स्वतंत्रता संग्राम लड़े गे रिहिस। इही लड़ई म बीर नारायण सिंह छत्तीसगढ़ म लड़े रिहिस। छत्तीसगढ़ म सबले पहिली आजादी के अलख जगइया अउ कोनो नो हे इही बीर नारायण सिंह आय। इहां यहू धियान देय के बात हे के छत्तीसगढ़ के ये पहिली शहीद एक आदिवासी बीर रहिस। धन हे शहीद बीर नारायण सिंह, तोर जीवन धन्न हे।
जब तक सुरुज नारायण के ताव रही,
बीर नारायण तोर नांव रही, बीर नारायण तोर नांव रही।

दिनेस चौहान
सितलापारा नवापारा राजिम

One reply on “सोनाखान के सोन: शहीद बीर नारायण सिंह”

जब तक सुरुज ताव रही,
बीर नारायण तोर नांव रही
बीर नारायण तोर नांव रही ।
नमन छत्तीसगढ महतारी के महान सपूत ल ।

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