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सुजान कवि के सुजानिक छन्द कविता : छन्द के छ

Chand Ke Chh Nihamछत्तीसगढ़ी के परथम समरथ कवि पंडित सुन्दर लाल शर्मा के बाद कवि श्री कोदूराम दलित तक छन्द म लिखइया पोठ साधक कवि रहिन. उंकर छन्द म लिखे छत्तीसगढ़ी कविता म जीवन के संदेस समाए हे कवि श्री कपिल नाथ कश्यप जी दोहा चौपाई के भरपूर उपयोग करे हें. दूसर जतका छन्द के समझ वाले छत्तीसगढ़ी कवि हें, वोमन रिसी मुनि के समान हे, वोमन के अपन छन्द विधान हे. कहे हें दोहा, फेर दोहा के कोनो लच्छन नइ दिखे. चौपाई घलो म चलन के भटकाव हे. कहे के माने दू पंक्ति म कहिं तब दोहा, चार पंक्ति म बात हे तब चौपाई.

सही माने म कविता लिखना, माने जेखर धेय, भाव बने सुग्घर ज्ञान के परखर अँजोर बगराए के होय, सब्द के साधना करे के कठिन काम होथे. तपस्या करे के समान होथे. मन के उमड़त-घुमड़त भाव के उड़ेल्ला पूरा ल , अपन बुद्धि बल ले, तौल के बने संभार के, सही सही अरथ म उदगार करना, हिरदे के जागरित तरंग ल पकड़ना, लहर ल बांधना जइसे होथे. सही समझ, सूख-बूझ बुद्धि ग्यान पुरखा-पीतर परंपरा के संस्कार संजोग ले मिलथे. सब्द साधना ल परम लौ के लागि लगन संत साधक मन माने हे. फेर आजकल जोड़-तोड़ छल परपंच तुक्कड़ जुक्कड़ म कविता के भरम भूत सवार हे. जेन कुछु अलकरहा कहिस वोही कवि अउ कविता. जुन्ना समे ले कम मेहनत म जादा पाए के दोस हर बाढ़ते जात हे.

साखी लाय बनाय के अक्षर काटि छांटि
कहे कबीर जब तक जीये, जूठी पत्तर चाटि |

एक हिरदे ल दूसर ले जोड़े, एक हिरदे के हूक हर दूसर हिरदे के कूक बन जाए, तभे तो कवि के कविताई म सारथक सुख हे आनंद हे.
अरुण निगम के छत्तीसगढ़ी छन्द संगरह “छन्द के छ” ल पढ़ के मोला बड़ अचरित लागिस ! आज के काम चलाऊ भेड़ियाधसान चुटकुला चलागन , जोकड़ाई कविताई के ज़माना म सोझ परंपरा के पाँव धरे, सम सामयिक भाव ले भरे पूरे कविता के सरूप म गढ़े , सब्द साधना के चढ़ान म चढ़त एक सही कवि कबके साधनारत हे ? कवि पंडित सुन्दर लाल शर्मा अउ कवि श्री कोदूराम दलित के छन्द परंपरा ल आगू बढ़ात हे. उंकरे मन कस जीवन के संदेस देवत हे, जागे जगाये के गोठ गोठियावत हे. हाँसे हँसाए , दया मया बगराए, मन हिरदे ल ऊँचा उठाए हे. जिनगी के मरम समझे समझाए , संस्कृति कला साहित्य के रसानंद भरे हे ये “छन्द के छ’ म .

अरुण निगम के छत्तीसगढ़ी कविता मन परंपरा के हमर पुरखा कवि मन के चेत करा देथे. सूर कबीर तुलसी जगनिक, केसव, बिहारी, घनानंद, रसखान, रहीम के संगेसंग हमर संस्कृति संस्कार के गढ़इया गुरु रवीन्द्र नाथ ठाकुर, सुमित्रानंदन पन्त, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, निराला ले लेके नीरज, आत्म प्रकाश शुक्ल अउ सोम ठाकुर तक के सुरता करा देथे. छत्तीसगढ़ी म चेत विचेत होके लिखइया कतको कवि हें, फेर सावचेत होके छन्द बन्द ल समझ अउ समझा के, लिखे के उदीम करइया कवि आज अरुण निगम हमर आगू ठाढ़े हे.

हमर भारती संस्कृति संस्कार ल बिगाड़े के उपाय कतको विदेसी मन करिन. वोसने हमर छन्द, साहित्य के सुग्घर परंपरा ल तोड़े-फोड़े के भारी उपाय होइस, फेर कविता हर मनखे जिनगी के सार संभार के मंतर आय. हमर कविता के छन्द-बन्द के अनुसासन सब्द सामरथ के चेतना आय. वोला मेटना, बिगाडना या खतम करे के कोसिस हर अबूझ मन के जल भाँठा भरम हे. कविता के छन्द-बन्द हर कविता साहित्य संसार के अमरित घट हे. ए बात ल सिद्ध करत हे अरुण निगम के रचे ये “छन्द के छ” छोटकुन किताब हर. छत्तीसगढ़ी के रचना संसार एकर ले फरही फुलही, पोठ होही, समरथ होही. नवा कवि, रचनाकार मन ल, नौजवान पढ़इया-लिखइया मन ल नवा समझ संस्कार अउ ग्यान बल मिलही.

ये किताब ल पढ़ के आज महूं ल नवा सीख मिलिस. स्कूल म पढ़े छन्द अलंकार रस ल भुलागे रहेंव. छन्द के कई किसिम के रचना भेद समझ म आइस. लिखना अउ लिखाए ल जांचना परखना सजग कवि के बूता आय. एक अउ सार बात हे , पढ़ समझ के कविता लिखना बहुत कठिन काम होथे. जेला कविता लिखे के सुर-मूर सरसती माई के दया मया किरपा जनमजात नइ मिले हे , वोहा कतको कोसिस के बाद छन्द म कविता नइ लिख सके. अंतरमन के कवि भाव जागे बिना छन्द के बहाव नइ होय. कविता के छन्द बन्द ह कवि हिरदे म , वोकर सुर-मूर म सहज समाए रथे. कवि ल कविता कोन लिखवाथे , ये भेद ल कवि घलो मन नइ जानय. तभे बने कवि के मन म अहंकार भाव नइ आय. कविता लिखाई ल जेमन हरू ढंग ले लेथें अउ अपन कविता ल अपन आत्म मोही सुभाव के मारे, सेखी अउ बड़ाई मारे के काम म लाथे. परनिंदा म पारंगत होके कविताई करथे वोमन सचमुच म कविता कलंकी आय.. कवि भाव ल जगाए बर कतको बने लिखइया घलो मन नसा-पानी के चक्कर म भटक जाथें. ये सबो बात के खुलासा छन्द बन्द के सुजान कवि अरुण निगम हर करे हे. उन बड़ भागमानी कवि आंय, जेला संस्कार म कविता लिखे के गुन अउ धुन मिले हे. संगेसंग मेहनत अउ गहिर गंभीर विचार करे के सामरथ घलो, जेन कविता के छन्द-बन्द ल निमारे के काम करथे. आजकाल के रचनाकार मन “सांकुर नदिया खल बउराई ” सुभाव के होथें, फेर अरुण निगम अइसन सुभाव ले आरूग हे. कवि ल कविता कोन लिखवाथे , ये भेद ल कवि घलो मन नइ जाने, ए रहस्य के चेत हे वोला. अपन लिखे ऊपर गुमान नइ हे. सब्द मन के उचित बेवहार करे के रीति-नीति के बंधान ल व्याकरन कथें. कविता साहित्य म गोठ बात के उतार चढ़ाव हर अरथ भाव ल बरोबर समझाए म मदद करथे. यति, गति, छन्द मात्रा तुक तान घलो मन भाव के अरथ ल अरथाए बर होथे. अरुण निगम हर सिरिफ छन्द के भेद ल समझाथे, रस अलंकार तो कविता म समायेच रथे. “छन्द के छ” किताब हर निमगा व्याकरन घलो नो हे. एमा छन्द विधान के सुग्घर सरल जानकारी हे, जेला उदाहरन देके पारंपरिक छन्द म सम सामयिक विचार के मिलान म सुग्घर कालजयी रचना करे के कोसिस हे.

आज जइसे देस म सफाई अभियान के भारी चर्चा हे जेला दोहा छन्द के गढ़न मुढ़न मात्रा यति के चिन्हा ल उदाहरन देके अरथाए हे – देखो

सहर गाँव मैदान – ला, चमचम ले चमकाव
गाँधी जी के सीख – ला , भइया सब अपनाव ||
साफ – सफाई धरम हे , एमा कइसन लाज
रहै देस – मा स्वच्छता, सुग्घर स्वस्थ समाज ||

नसा म नसावत परिवार के दुख के चेत, किरिया खाके छोड़े के संदेस- रोला छन्द के एक सुग्घर उदाहरन –

पछतावै मतवार , पुनस्तर होवै ढिल्ला
भुगतै घर परिवार , सँगेसँग माई-पिल्ला
पइसा खइता होय, मिलै दुख झउहा-झउहाँ
किरिया खा के आज , छोड़ दे दारू-मउहाँ

अइसने कतको बने बने पद छन्द गढ़ के अवसर के अनुसार उचित बात ल पारंपरिक छन्द दोहा सोरठा कुंडलिया रोला अउ घनाक्षरी म लिखे गे हे.

हरियर रुखराई कटिस, सहर लील गिन खेत
देखत हवैं बिनास सब, कब आही जी चेत
कब आही जी चेत , हवा-पानी बिखहर हे
दवइ के भरमार , खेत होवत बंजर हे
रखौ हवा-ला सुद्ध , अऊ पानी-ला फरियर
डारौ गोबर-खाद , रखौ धरती ला हरियर

देस समाज के आगू मुंहबाए समस्या के निदान खेती किसानी, रुखराई संग हरियाली बढ़ाए म हे

छन्द के बहाना म कतको छत्तीसगढ़ी के सास्वत विचार ल कविता मन म पिरोए हे. अरुण निगम के कविता कला म उंकर बुद्धि बल बढ़े चढ़े दिखथे –

हमरेच देश म हे, तीन ऋतु अउ कहाँ
शरद हेमंत अउ , सिसिर बताव जी
बात मोर पतियावौ,, भाग खूब सहरावौ
छोड़ के सरग सहीं ,देस झन जाव जी |
भगवान सिरजे हे, हिंद ला सरग सहीं
हिंद-माँ के सेवा कर, करजा चुकाव जी
पइसा कमाये बर, झन छोड़ जावौ देस
अरुण के गोठ आज,सबो ल सुनाव जी

छत्तीसगढ़ी साहित्य कला संस्कृति के बढ़ोतरी बर छत्तीसगढ़ के कवि समाज, कविता लेखन म अगुवा हे. सावचेत हो के समझदारी ल जागरित करे बर छत्तीसगढ़ी के कवि लेखक कमर कस के तियार हे. समाज के पसरे अग्यानता अंध विसवास, सभिमान हीनता म जकड़े मनखे के जिनगी ल मुकति के रस्दा दिखाए बर एक मात्र साहित्य के मसाल ल जगाए रखना हे. अरुण निगम जइसे कवि सुजान रचनाकार मन ए सच्चाई ल जानगे हें. छत्तीसगढ़ी रचना संसार म “छन्द के छ” किताब के आए ले एक नवा विचार के अंजोर बगरही. जतर-खतर लिखइया मन सावचेत होही, अइसे मोर विसवास हे. गियान गुनान बढ़इया छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करइया अइसन सुग्घर रचना करे बर कवि अरुण निगम ल नंगत अकन ससन भर बधाई अउ मंगल कामना हे, के उन असने अउ नवा नवा रंग ढंग के साहित्य के रचना म लगे रहंय.

wpid-laxman-masturiya.jpg.jpegलक्ष्मण मस्तुरिया
सेक्टर – १ , दुर्गा चौक के पास,
१६०, प्रोफ़ेसर कालोनी
रायपुर

One reply on “सुजान कवि के सुजानिक छन्द कविता : छन्द के छ”

” होनहार बिरवान के होथे चिक्कन पान ” हाना हर एकदम सही ए । जनकवि कोदूराम ” दलित” के बेटा अरुन निगम हर छंद के विरासत ल आघू बढावत हे । छ्त्तीसगढ के नवा – जूना साहित्यकार मन ल वोहर छंद लिखना सिखोवत हे । ए बुता ल अरुन निगम हर पूजा सरिख करत हे । भगवान वोकर संक्ल्प ल पूर्ण करय ।

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