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गोठ बात

सुनय सबके, करय अपन मन के : सियान मन के सीख

सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हे। संगवारी हो तइहा के सियान मन कहय-बेटा! सुनय सबके अउ करय अपन मन के रे। फेर संगवारी हो हमन उॅखर बात ला बने ढंग ले समझ नई पाएन। हमन ला भगवान हर मुंह एक ठन अउ कान दू ठन देहे हावय काबर कि हमन सुने के बुता जादा अउ गोठियाय के बुता कम करन फेर हमर से अइऐ हो नई सकय काबर कि हमन बोले के बुता जादा अउ सुने के बुता कम करथन अउ एखरे सेती हमन ला कभू-कभू भारी नुकसान उठाए बर घलाव परथे। रावन हर अतेक ज्ञानी रहिस हावय कि ओखर ज्ञान के अभिमान हर ओला ले डूबिस।



सवाल ये उठथे कि आखिर हमन कखरो सुनन काबर नहीं? संगवारी हो हमन कोनो ला सुनना तब पसंद नई करन जब हमर मन में ये अभिमान रइथे कि सामने वाला ले जादा तो मैं हर जानथंव। यही ”मैं” हर हमन ला ले डूबथे। कहे गै हावय कि मनखे ला जतका ज्ञान बुद्धिमान से नई मिलय ओखर ले जादा ज्ञान मूरख ले मिलथे काबर कि बुद्धिमान हर तो बोल के बताथे फेर मूरख मनखे हर करके बताथे कि हमनला का बुता नई करना चाही। रावन ला जम्मों झन मिलके अतेक समझाइन कि भगवान राम से युद्ध करना मतलब कुल के विनाश करना हे? फेर रावन अपन अभिमान में चूर रहिस हावय एखर सेती ओला कुछु समझ में नई आइस काबर कि वो कुछु सुने बर तियारे नई होइस। हमर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के तीन ठन बेंदरा मन घलाव हमनला यही सिखाथे कि हमनला बुरा न तो देखना चाही न सुनना चाही अउ न बोलना चाही। एखर मतलब ये हवै कि एक घंव जउन चीज हर हमर आंखी, कान अउ मुंह के भीतर चल दिस वो हर हमर सरीर में असर जरूर करथे।



जइसे अगर कोनो जिनिस ला हमन खाथन तब वोहर हमर सरीर में असर जरूर करथे वइसने जउन दृश्य हर हमर ऑखी में दिख गे तउनो हर अउ जउन बात ला हम अपन कान ले सुन डारेन तउनो हर अपन असर देखाए बिना नई राहय फेर कभू-कभू हमन अपन ऑखी अउ कान ला अइसे आदेश ही नई देवन कि वोहर कोनो बात ला सुनय अउ देखय। काबर कि हमन अपन अंतस के घमंड में चूर रहिथन अउ घमंड के घर एक न एक दिन जरूर खाली होके रइथे। एखर पहिली कि हमन अपन आखी अउ कान ला अपन घमंड के सेती बंद करके अपने नुकसान करि हमन ला अपन आखी अउ कान ला खोल के सब के बात ला सुन के अउ अपन अंतस ले गुन के कोनो फैसला करना चाही। एखरे सेती तो न्याय करे के पहिली अपराधी के बात ला घलाव सुने जाथे काबर कि कभू-कभू आंखी के देखे अउ कान के सुने घलाव हर झूठ निकल जाथे। सियान बिना धियान नई होवय। तभे तो उॅखर सीख ला गठिया के धरे मा ही भलाई हावै। सियान मन के सीख ला माने मा ही भलाई हावै।

रश्मि रामेश्वर गुप्ता
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