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कविता

मोर गांव मया-प्रेम के

मोर गांव हवे अबड़ बढिय़ा, बोहवत नदिया, सुहावत तरिया। मान मनऊला छोटे-बड़े के ‘भेदभाव’ करै न कोना ला जिहां दया के तरिया छलकत हे मया-प्रेम के नदिय बोहवत हे घर-आंगन सब सजे-धजे आना-जाना लोगन के ले हवे, गली खोर अऊ संगी संगवारी बइठे मंदिर के चौरा में संझौती बने सियान संग बबा बिहारी। बरजत लइकन […]