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गोठ बात

ढेलवा डोंगरी

हमर गांव डाहर झलप के तीर म ढेलवा डोंगरी हे। एकर ले संबंधित भीम अउ हिरमिसी कैना (हिडम्बनी) के एक कथा हे। ये डोंगरी म ओ कैना के महल रिहीस अउ झूले बर बड़े जनिक ढेलवा रिहीस। पंडो मन के बनवास के समय घूमत घामत एक दिन भीम ह ओ डोंगरी म आगे। ढेलवा झूलत […]

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कविता

माटी बन्दना – बंधु राजेश्वर राव खरे

(इस कविता का हिन्दी अनुवाद  आरंभ में देखें) माटी के हमर घर-कुरिया माटी हमर खेती-खार हे जय हो महतारी माटी महतारी तोला हमर जय जोहार हे। माटी मं सबके उपजन-बाढन माटी मं जिनगानी माटी जनम-करम के संगी माटी हावय अनपानी माटी सबके तन-मन के सिंगार हे। माटी के बनथे नंदिया बईला माटी के जांता-पोरा माटी […]

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व्यंग्य

पईसा म पहिचान हे

 रामदास ह समय के संगे संग रेंगे के सलाह सब झन ल देवत रथे। ”जइसे के रंग, तइसे के संगत” अभी के समय मं पईसा के बोलबाला हावय। एक समय रिहिस जब लाखों के काम एक भाखा मं हो जावय। एक जमाना येहू रिहिस कि गांव के नेता हर गली खोर मं परे डरे कागज, […]

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कहानी

तीजा के लुगरा – बन्धु राजेश्वर राव खरे

”सालपुर तीजहा लुगरा के गिरत दसा ल देखके एसो ओला नइ सहइस। लुगरा ल अपन तन म मन मार के लपेटे रिद्धहस फेर ओखर मन हर नंगत काच्चा होगे। ओखर ले नई रेहे गीस तब अपन भाई ल सुना दीस, मैं अभी पाठ के भाई होतेंव तब ये पुरखौती जहिजाद के दू बांटा होतीस। मैं […]

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व्यंग्य

हाथी बुले गांव – गांव, जेखर हाथी तेखर नाव

नाव कमाय के मन, नाव चलाय के संऊख अउ नाव छपाय के भूख सबो झन ल रथे । ये भूख हर कउनो ल कम कउनो ल जादा हो सकथे, फेर रथे जरूर । एक ठन निरगुनिया गीत सुने बर मिलथे – नाम अमर कर ले न संगी का राखे हे तन मं । कतकोन झन […]

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व्यंग्य

अब बिहाव कथे, लगा के देख

केहे जाथे कि जन्म बिबाह मरन गति सोई, जो विधि-लिखि तहां तस होई । जनम अउ मरन कब, कहां अउ कइसे होही ? भगवान हर पहिली ले तय कर दे रथे । वइसने ढ़ंग के बिहाव कब, कहां अउ काखर संग होही ए बात के संजोग भगवान हर पहिली ले मढ़ा दे रथे । फेर […]

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व्यंग्य

इही तो आजादी आय

गनपत अउ धनपत दुनो झन रेडियो सुनत बइठे राहंय । रेडियो हर नीक-नीक देसभक्ति के गीत गावत राहय अउ बोलत राहय कि हमर आजादी साठ बरीस के होगे । तब गनपत हर धनपत ल पूछथे कि- रेडिया हर अजादी ल साठ बरीस के होगे कथे फेर हम तो आज ले ओखर दरसन नइ करे हावन […]