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समीच्‍छा

छत्तीसगढ़ गज़ल और बलदाऊ राम साहू

-डॉ. चितरंजन कर निस्संदेह गज़ल मूलत: उर्दू की एक काव्य विधा है, परन्तु दुष्यंत कुमार के बाद इसकी नदी बहुत लंबी और चौड़ी होती चली गई है। जहाँ-जहाँ से यह नदी बहती है, वहाँ-वहाँ की माटी की प्रकृति, गुण, स्वभाव और गंध आदि को आत्मसात कर लेती है, जैसे नदी अलग-अलग प्रांतों, देशों में बँटकर […]

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गोठ बात

छत्तीसगढ़ी के सरूप

‘छत्तीसगढ़ी म हिन्दी, संस्कृत अरबी, फारसी, अंगरेजी, उडिया, मराठी अउ कउन-कउन भासा मन के सब्द मन आके रच बस गिन हें। फेर ओमन अब छत्तीसगढ़ी के हो गिन हें। असल म सब्द मन के जाति, बरग, इलाका धरम अब्बड़ उदार रथे। जेकर कारन ओ मन सुछिंद एती-ओती जात-आत रथें। असली लोकतंत्र भासा म नजर आथे।’ […]