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कविता

घाम बइसाख-जेठ के : कबिता

बइरी हमला संसों हे, बीता भर पेट के।खोई-खोई भुंज डरिस, घाम बइसाख जेठ के।तिपत हे भुइंया, तिपत हे छानी।तात-तात उसनत हे तरिया के पानी।मजा हे भइया इहां सेठ के।खोई-खोई….रचना हे जांगर, खेत म ढेलवानी।भुंजावत हे बइरी, कोंवर जिनगानी।बेसुध हे जिनगी, सुरता न चेत के।खोई-खोई….चलत हे झांझ, जरत हे भोंभरा।मन पंछी खोजत हे खोंदरा।पोट-पोट लागे घाम […]

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कविता

दमांद बाबू : कबिता

मही म रांधे हे, नोनी भुंज बघार के।ले-ले सुवाद, ‘दमांद बाबू’ भाजी बोहार के।डारे हे नोनी मिरचा के फोरन।कब चुरही हम्मन अगोरन।बघारे हे नोनी गोंदली डार के।ले ले… चेतावय दाई, बिगरे झन नोनी।माहंगी के भाजी, नई देइस पुरउनी।रांधबे नोनी सुग्घर झाड़-निमार के।ले-ले… मही-मही कही के, दाई पारे गोहार गा।गजब मिठाय हे भाजी बोहार गा।मत पूछव […]

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कहानी

नान्हे कहिनी : सात फेरा

नोनी रूखमनी ह अपन परिचय देवत कहिथे आदमी अपन मन ले सुखी अऊ दु:खी होथे। मैं हां तुंहर पांव बनहू। ये चुंदी ल झन कटवाहूं। इही हा साधु सन्यासी के निसानी होथे। तुंहर परिचय इही हे। जिनगी के बड़ गजब किस्सा हे संगवारी हो, गरीब, मजबूरी एकर हिस्सा हे। एक घर के बाह्मन परिवार घला […]