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गोठ बात

लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम

आखिर लहरागे छत्तीसगढ़ी के परचम। छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा के रूप म आखिरी मुहर लगाय बर बाकी हे। अऊ विदेस म परचम लहरागे। वाह! वाह! हमार भाग! छत्तीसगढ़ी भासा के भाग खुलगे अऊ एखर बढ़ती बेरा आगे। कोनों नइ रोक सकय एखर उन्नति के दुवार ल। हिन्दी के छोटे बहिनी, अऊ मगही मैथिली के सहोदरी […]

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कहानी

हाय रे मोर मंगरोहन कहिनी – डॉ. सत्यभामा आड़िल

बीस बछर होगे ये बड़े सहर मं रहत, फेर नौकर-चाकर मिले के अतेक परेसानी कभु नई होईस। रईपुर ह रजधानी का बनिस, काम-बूता के कमती नई। भाव बढ़गे काम करईया मन के। घर के काम बर घलो कोनो नई मिलय। कहूं मिलगे एकाध झन, त सिर ऊपर करके, जबान लड़ाके बराबरी मं बात करथें। उड़िया […]

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कहानी

सीला बरहिन नान्हें कहिनी – सत्यभामा आड़िल

सीला गांव ले आय रिहिस, त सब ओला सीला बरहिन कहांय। अपन बूढ़त काल के एक बेटा ल घी-गुड़ खवावय, त देवर बेटा मन ल, चाऊर पिसान ल सक्कर म ए कहिके पानी मं घोर देवंय। देवरानी जल्दी खतम होगे देवर तो पहिलिच खतम होगे रिहिस। नान-नान लईका देवर के फेर सीला बरहिन के बेटा […]