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गीत

बरसा गीत

हरियागे धरती अऊ खेती म धान, कई मन के आगर हें चतुरा किसान। बरसथे बादर, अऊ चमकत हे बिजुरी, नोनी मन हवा संग म खेलथें फुगड़ी। मेड़ पार म अहा तता, भर्री म कुटकी, लपकट लहरावत हे, घुटवा कस लुगरी। सोना बरसाथें – गुलाबी बिहान। कइ मन के आगर हें चतुरा किसान। अरवा अऊ नदिया […]

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कविता

माटी हा महमहागे रे

गरजत घुमड़त, ये असाढ़ आगे रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे॥ रक्सेल के बादर अऊ बदरी करियागे, पांत पांत बगुला मन सुघ्घर उड़ियागे। कोयली मन खोलका म चुप्पे तिरियागे, रूख-रई जंगल के आसा बंधागे।। भडरी कस मेचका मन, टरटराये रे। माटी हा सोंध सोंध महमहागे रे ॥ थारी सही खेत हे, पटागे खंचका-डबरा, रात […]

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कविता

मनतरी अऊ मानसून

नांगर बइला बोर दे पानी दमोर दे ।। लहरा के बादर मन ला ललचाथे आवथे अऊ जावथे किसान ला उमिहाथे लइका मन भडरी कस मटकावत गावथे नांगर बइला बोर दे पानी दमोर दे ।। सनझा के घोसना बिहिनिया बदल जथे उत्ती के अवइया बुड़ती मा निकल जथे मनतरी अऊ मानसून उलटा हे इंकर धुन कहे […]

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कविता

सुघ्घर लागथे मड़ई

ओरी ओर सजथे , बजार भर दुकान , टिकली फीता फुंदरी , रंग रंग के समान । भीड़ भाड़ लेनदेन , करे लइका अऊ सियान , जोड़ी जांवर , चेलिक मोटियारी मितान । गुलगुल भजिया , मुरकू , बम्बई मिठई , खावत गंठियावत , अंचरा म खई । ललचा देथे मनला , चुनचुनावत कड़हई , […]

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कविता

कविता : छत्तीसगढ़ तोर नाव म

भटकत लहकत परदेसिया मन, थिराय हावंय तोर छांव म। मया पिरीत बंधाय हावंय, छत्तीसगढ़ तोर नाव म॥ नजर भर दिखथे, सब्बो डहर, हरियर हरियर, तोर कोरा। जवान अऊ किसान बेटा ला – बढा‌‌य बर, करथस अगोरा॥ ऋंगी, अंगिरा, मुचकुंद रिसी के ‌ – जप तप के तैं भुंइया। तैं तो मया के समुंदर कहिथें तोला, […]

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गीत

दिया बन के बर जतेंव

दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥ अंधियारी हा गहरावथे , मनखे ला डरूहावथे । चोरहा ला उकसावथे , एकड़ा ला रोवावथे ॥ बुराई संग जूझके , अंगना म तोर मर जतेंव । दाई ! तोर डेरौठी म दिया बन के बर जतेंव ॥ गरीबी हमर हट जतिस , भेदभाव […]

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कविता

गजानंद प्रसाद देवांगन जी के कविता

चूनी के अंगाकर कनकी के माढ़ । खा के गुजारत हे जिनगी ल ठाढ़ । कभू कभू चटनी बासी तिहार बार के भात । बिचारा गरीब के जस दिन तस रात । चिरहा अंगरखा कनिहा म फरिया । तोप ढांक के रहत छितका कस कुरिया । उत्ती के लाली अउ बुड़ती के पिंवरी । दूनो […]