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कविता

भोंभरा : कबिता

भुइंया ह बनगे तात-तवई बंडोरा म तोपागे गांव-गंवई नइये रूख-राई के छईहां रूई कस भभकत हे भुईंहां रद्दा रेंगइया जाबे कती करा थिराले रे संगी, जरत हे भोंभरा गला सुखागे, लगे हे पियास कोनो तिर पानी मिले के हे आस तरर-तरर चूहत हे पछीना जिव तरसत हे, छईहां के बिना का करबे जाबे तैं कती […]

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पूस के जाड़

पुरवाही चलय सुरूर-सुरूर। रूख के पाना डोलय फुरूर-फुरूर॥ हाथ गोड़ चंगुरगे, कांपत हे जमो परानी। ठिठुरगे बदन, चाम हाड़। वाह रे! पूस के जाड़॥ गोरसी के आंच ह जी के हे सहारा। अब त अंगेठा कहां पाबे, नइए गुजारा॥ नइए ओढ़ना बिछना बने अकन। रतिहा भर दांत कटकटाथे, कांप जाथे तन। नींद के होगे रे […]

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धान बेचई के करलई

किसान के पीरा ह जग हँसई होगे। मंडी म धान के बेचई करलई होगे॥ अधरतिहा ढिलाइस बईला-गाड़ी। जुड़ म चंगुरगे हाथ-गोड़ माड़ी॥ झन पूछ भूख, पियास नींद के हाल। चोंगी, माखुर तको जइसे, होगे बेहाल॥ होटल के गरम वोहा दवई होगे। मंडी म धान के बेचई, करलई होगे॥ लोग हे मंडी म धान के ढेरी। […]