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कविता

नवा साल आगे रे

नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़। मुड़ के पाछू मत देख, आघू-आघू बढ़॥ पहागे रात करिया, आगे सोनहा फजर। सुरूज उत्ती म चढ़गे, किसान खेत डहर॥ खोंदरा ले चिरइया बोलै, चींव-चींव अडबड़। नवा साल आगे रे, अपन जिनगी ल गढ़॥ दु हजार दस फेर कभू नइ तो बहुरय। घर बइठे तरिया भर, पानी […]