रेल गाड़ी ह टेसन म छिन भर रूकिस अउ सीटी बजात आगू दंउड़ गिस। छिने भर म टेसन ह थोड़ देर बर बदल जाथे। सइमों-सइमों करे लागथे। सोवत, नींद म बेसुध कोई प्राणी ह जइसे अकचका के, झकनका के जाग जाथे। कोनो चघत हे, कोनो उतरत हे। कोई आवत हे, कोई जावत हे। कोई कलेचुप […]
Tag: Kuber
आज संझा बेरा पारा भर म सोर उड़ गे – ‘‘गनेसी के टुरी ह मास्टरिन बनगे…………..।’’ परतिंगहा मन किहिन – ‘‘काबर अइसने ठट्ठा करथो जी? ओली म पइसा धरे-धरे किंजरत हें, तिंखर लोग-लइका मन कुछू नइ बनिन; गनेसी के टुरी ह मास्टरिन बनगे? वाह भइ ! सुन लव इंखर मन के गोठ ल।’’ हितु-पिरीतू मन […]
बाम्हन चिरई
बिहाव ह कथे कर के देख, घर ह कथे बना के देखा। आदमी ह का देखही, काम ह देखा देथे। घर बनात-बनात मोर तीनों तिलिक (तीनों लोक) दिख गे हे। ले दे के पोताई के काम ह निबटिस हे, फ्लोरिंग, टाइल्स, खिड़की-दरवाज अउ रंग-रोगन बर हिम्मत ह जवाब दे दिस। सोंचे रेहेन, छै-सात महीना म […]
आज के सतवंतिन: मोंगरा
बाम्हन चिरई ल आज न भूख लगत हे न प्यास । उकुल-बुकुल मन होवत हे। खोन्धरा ले घेरी-बेरी निकल-निकल के देखत हे। बाहिर निकले के चिटको मन नइ होवत हे। अंगना म, बारी म, कुआँ-पार म, तुलसी चंवरा तीर, दसमत, सदा सोहागी, मोंगरा, गुलाब, अउ सेवंती के फुलवारी मन तीर, चारों मुड़ा वोकर आँखी ह […]
फगनू घर बिहाव माड़े हे। काली बेटी के बरात आने वाला हे। जनम के बनिहार तो आय फगनू ह, बाप के तो मुँहू ल नइ देखे हे। राँड़ी-रउड़ी महतारी ह कइसनों कर के पाले-पोंसे हे। खेले-कूदे के, पढ़े-लिखे के उमर ले वो ह मालिक घर के चरवाही करत आवत हे। फूटे आँखी नइ सुहाय मालिक […]
परिचय : कथाकार – कुबेर
नाम – कुबेर जन्मतिथि – 16 जून 1956 प्रकाशित कृतियाँ: 1 – भूखमापी यंत्र (कविता संग्रह) 2003 2 – उजाले की नीयत (कहानी संग्रह) 2009 3 – भोलापुर के कहानी (छत्तीहसगढ़ी कहानी संग्रह) 2010 4 – कहा नहीं (छत्तीवसगढ़ी कहानी संग्रह) 2011 5 – छत्तीसगढ़ी कथा-कंथली (छत्ती़सगढ़ी लोककथा संग्रह 2012) प्रकाशन की प्रक्रिया में: 1 […]
मरहा राम के संघर्ष
असाड़ लगे बर दू दिन बचे रहय। संझा बेरा पानी दमोर दिस। उसर-पुसर के दु-तीन उरेठा ले दमोरिस। गांव तीर के नरवा म उलेंडा पूरा आ गे। परिया-झरिया मन सब भर गें। मेचका मन टोरटोराय लगिन। एती दिया-बत्ती जलिस कि बत्तर कीरा उfमंहा गें। किसान मन के घला नंहना-जोताार निकल गे। बिहने फजर घरो-घर नांगर-पाटी […]
मरहा राम के जीव
रात के बारा बजे रहय। घर के जम्मों झन नींद म अचेत परे रहंय। मंय कहानी लिखे बर बइठे रेहेंव। का लिखंव, सूझत नइ रहय। विही समय बिजली गोल हो गिस। खोली म कुलुप अंधियारी छा गे। बिजली वाले मन बर बड़ गुस्सा आइस। टेबल ऊपर माथा पटक के सोंचे लगेंव। तभे अचरज हो गे। […]
अम्मा, हम बोल रहा हूँ आपका बबुआ
बड़े साहब के रुतबा के का कहना। मंत्री, अधिकारी सब वोकर आगू मुड़ी नवा के, हाथ जोड़ के़ खड़े रहिथें। वोकरे चलाय तो सरकार चलथे। वोकर भाखा, ब्रह्मा के लिखा। इंहां काकर हिम्मत हे कि वोकर विरोध कर सके। मुंह उलइया मन के का गति होथे सब जानथें। देख सुन के कोन बघवा के मुंह […]
पंदरा अगस्त के नाटक
चउदा तारीख के बात आय। रतनू ह खेत ले आइस। बियासी नांगर चलत रहय। बइला मन ल चारा चरे बर खेते डहर छोंड़ के आय रहय। देवकी ल कहिथे – ‘‘राजेस के मां, आज दिन भर के झड़ी म कंपकंपासी छूट गे। चहा बना के तो पिया दे। राजेस ह स्कूल ले आ गिस होही, […]