सखी रे ! बसंत आगे मन के मोर अंगना म कोयल भुलागे अपन बोली बर-पीपर के पान बुडगागे अबीर धरे धरे हाथ ल गंवागे पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे कब आही मोर मयारू सपना मोर अबिरथा होगे गुरतुर गोठ अब सुहावे नही पिया के संदेसा बाछे बछर बीत गे दरपन मोला भावे नही […]
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कविता : कहॉं लुकाये मोर मईया
कहॉं लुकाये मोर मईया तोला खोज डारेंव ओ कोने गांव – नगर डगर में मईया, कोने शहर में मईया जस ल तोर मन म गुनगुनाथौं हिरदे म सुमिरन करथौं कहॉं लुकाये मोर मईया तोला खोज डारेंव ओ रायगढ बुढी माई गयेंव चन्र्यपुर चन्र्रहासनी ओ सारंगढ समलाई गयेंव कोसीर कुशलाई ओ अडभार के अष्टभुजी गयेंव रतनपुर […]
कुशलाई दाई के मंदिर म सजे हे जेवारा.
कुशलाई दाई के मंदिर म सजे हे जेवारा….. मंगल गीत गावत हांवे झुमत हें सेवा म जगर बगर जोत जलत हे दाई के भुवन म बैगा झुमत हे मांदर के सुर म नाहे नाहे लईका मन अउ सियान मन हावे अंगना म मंगल गीत गावत हांवे झुमत हें सेवा म डोकरी दाई घर राखत हावे […]
कविता : नोनी बर फुल
नोनी बर फुल …. घर के अंगना म फुले हे कनेर के फुल पिअर -पियर दिखत हे डाली म झुलत हे नोनी ह देख के दाई ल पुचकारत हे खिलखिलाके हांस के बेलबेलावत हे अंचरा ल दाई के खिंच – खिंच के फुल ल बतावत हे दाई भुइंया म बैठ के दही ले लेवना निकालत […]