Categories
कविता

हवा हमर बैरी बनगे

ऐ दाई ते हरह सुने हस का वो? काय रे? ऐती वोती चारों कोती, ‘स्वाइन फ्लू’ है बगरत हावय काय फूल रे? बने तो हे रे! फूल बगरत हावय त चारो कोती बने ममहाही वइसने आजकल पढ़े लिखे मन घलो कचरा ल जम्मो डाहर फेंक देथे अउ हमन अनपढ़ होके घलो घुरूवाच म डारथन। नहीं […]