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कविता

परमेश्वर के आसन

गांव-गांव पंचइती, खुलगे बांचे खुल जाही। अइसन सबे गांव हर ओकर, भीतर झटकुन आही।। गांव-गांव पंच चुनाही, भले आदमी चुनिहा। जेहर सबला एक इमान से, थाम्हे घर कस थुनिहा।। गांव के बढ़ती खातिर अब, लंजावर कमती होही। ओतके मिलही सफा बात ये, जउन हर जतका बोंही।। जतके गुर ततके मिठास कस, जउन काम जुरहीं। मिल […]

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गीत

लगथे आजेच उन आहीं : श्यामलाल चतुर्वेदी के कविता

डेरी आँखी फर कत हे लगथे आजेच जानत हौं उनकर सुभाव जानत हौ आतेच टू री ला पाहीं दू महीना कहिन गइन तौ गय चार, पाँच अधियांगे रोजहा के डहर देखाई मा आँखी मोर चेंधियागे निरदयी मयाला टोरिस रोजमारे जरय सिरावै ओमा का नफा धरे हे छोडे़ घर दुरिहा जावै मोर रिसही के रिस देख […]

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कहानी

कहिनी : बाढ़ै पूत पिता के धरम

सनेही महराज सब नौकरी के दिन पूरा करके गांव म जाके खेती-पाती करे लागिस। ये महाराज ले ओकर महराजिन हर चार आंगुर आघू रहिस। बिहनिया कहूं चाह पियत म राउत आ जातिस। तब अपन चाह पिआई ल छोड़के ओकर बर चाह बनाके दे लेतिस तब फेर अपन पितिस। अइसने घर भंड़वा करइय्या रउताइन के चेत […]