Categories
कविता

पंच-पंच कस होना चाही

पंच पंच कस होना चाही, साच्छात परमेस्वर के पद, पबरित आसन येकर हावै, कसनो फांस परे होवे, ये छिंही-छिंही कर सफा देखावै। दूध मा कतका पानी हे, तेला हंसा कस ये अलग्याथे। हंड़िया के एक दाना छूके, गोठ के गड़बड़ गम पाथे।। छुच्छम मन से न्याव के खातिर, मित मितान नइ गुनै कहे मा। पाथै […]