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कहानी

कहिनी : उपास

गांव म एक झन बिमरहा मनखे रहय। रोज के पेट पीरा म बिचारा कुछ काम-बुता करे नई सकय। भात खावय तहां ले बाहिर कोती जावय। थोरकिन हफरहा बानी तको रहीस। एक दीन के बात आय। परस हर भात खाके लोटा म पानी धरके चुपे-चाप बाहिर जाय बर निकलत रहीस ततके बेरा कईलान महराज घूमत-घामत आत […]

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कविता

डुमर डारा : कबिता

कोचके भौजी भइया लाकइबे जाके सब पाराआज मड़वा गड़ही भाई के काटे जाहा डुमर डारा। हरियर-हरियर छाय लागहीढेड़हा-ढ़ेड़हीन ल जागे लागहीसजाही मंगरोहन पिढुहा फुफुदीदी धरे पर्राभौजी के बहनी उड़ावय गर्राभड़त-भड़त थक गे समधीनचाबत हे बहेरा, हर्रा। लाली-लाली पहिने लुगरीदीखत हे सोन परी लिबिस्टिक लगाय समधीनपहिने सोनाटा घरी। आय हे सब भाई मनदेखे डिपरा खाल्हे पाराकहत […]

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कविता

श्यामू विश्वकर्मा के कबिता : मन के आंसू मन म पोंछ ले

मन के पीराकर देथे तन ल खोखलाचाहे होवय जवाननई छोड़य लईका-डोकरा।घुट-घुट के बेंगवाजइसे येती-ओती तलमलाथेनिकाल देबे कुंआ ले ये बेंगवाबिन पानी के फड़फड़ाथे॥तस मन के पीराबन के भाला तन ला कोचयमने हर बिमार पड़े हेत तन के पिरा कोन सोचय।ये मन के पिरा हर,मरत ले नई छुटयखाले चाहे कतको किरियामया हर नई टुटय॥नइये चिनहारी मया […]

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कविता

नइए भरोसा संगवारी-रागी

नइए भरोसा संगवारी-रागी हवा पानी अउ आगी। नइए भरोसा संगवारी रागी॥ दाई बहनी सबके खाथे किरिया। नइए लाज शरम पिरिया॥ न दाई ल, दाई जानत हे। न बहिनी ल, बहनी मानत हे॥ सबके ऐके ठन राज आय। धन-दौलत अउ काज आय॥ मोर खेत कइके बताथे लबरा। देखे जाबे त दीखत हे डबरा॥ लबरा के मुंह […]

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गोठ बात

गोठ बात : पानी बचावव तिहार मनावव

तैं माई लोगिन होतेस त जानतेस पानी-कांजी भरे म कतका दु:ख अउ सुख लागथे तोला काय लगे हे। भात ल खा के मुंह पोंछत निकल जाबे। मैं हर जानहा कतका दु:ख तेला सत्ररा घांव पानी भर छुही म पोत घर ल फेर रंग म पोत आजकल तो बोरिंग ले पानी घलो नई निकलत हावय। अभी […]

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कविता

बखत के घोड़ा

खावत हे, पियत हे रातदिन मारा-मारी जियत हे बिन लगाम दउड़त हे बखत के घोड़ा। रात हर दिन हो जाथे दिन हर रात हो जाथे बिन काम होय आराम लागथे मनखे ल हराम आज ये डहर काल ओ डहर ये शरीर बन जाथे कोदो कस गरू बोरा बखत के घोड़ा। चलगे जेकर पांव के टापू […]

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कहानी

खेती म हावय सब सुख – कहिनी

सीताराम हर एक दिन शहर गीस घूमे बर, शहर के हालचाल जाने बर सीताराम शहर पहुंचगे। बढ़िया-बढ़िया घर-कुरिया, पांच तल्ला छै तल्ला। सब ल देखिस घूमत-घूमत सीताराम ल भूख लागिस खोजत-खोजत एक ठन बढ़िया होटल म गिस पेट भर रोटी-भात खाइस। होटल वाला ल पूछथे, कस गा भइया, के रुपया होइस? होटल वाला सेठ कइथे, […]

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कविता

लड़ते पंचायत चुनाव

भइया बबा दीदी हो सुन लेवा मोरो नाव। तुहर मन के किरपा होतीस लड़ते पंचायत चुनाव पांच सौ रुपया देहुं तुमन ल काकी भौजी बर इलियास लुगरा। घर-घर जाय बर चालू करव खा-खा के देशी कुकरा॥ चेता देबे कका ल भइया अन्ते तन्ते बिछाथे। पइसा मांगही त पइसा देबो गाविन्दा कका बताथे॥ आज पारा के […]