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कविता

एक पाती सुरूज देवता के नाव

जग अंधियारी छा गे हवय, मन ला कईस उजियारंव गा। आ जतेस तै सुरूज देवता, बिनती तोर मनावंव गा॥ कारी अंधियारी बादर, हफ्ता भर ले छाय हवय, शीत लहर के मारे, देहें सरी कंपकपाए हवय। यहां मांग-पूस मं, सावन कस बरसत हे, कोन परदेस गे तैं, दरस नई मिलत हे॥ कतेक दु:ख ला गोठियावंय मय, […]

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कहानी

कहिनी : लछमी

मास्टर ह रखवार ल कथे- चल जी मंय तोला परमान भीतरी दूंहू आ कहिके रखवार अऊ रऊत संग गुरुजी ह भीतरी म जाथे, गरूआ मन ओला देख के बिदके ल लगथे एती-ओती भागे ल धरथे त रखवार ह हांसथे- ले जम्मो तो तोला देखके भीतरी म भागथे बड़ा गाय वाला बनथस। मास्टर कथे अभी देख […]

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कविता

भाग ल अजमावत हावय

दिन-रात पोंगा ल, वजावत हावयं घर-घर म जाके, रिरियावत हावंय अईसन छाये हे, चुनावी मऊसम चारो खूंट मनखे, बगरावत हावंय कोन्हों कुछु करंय त झन करंय फेर, लोगन ल आसरा देवावत हावय नान-नान लईका, जंवरिहा, सियान दारू पीरे बन गेहें मितान ‘नल’, ‘जांता’ अऊ ‘पत्ती’ छापा सब्बो ‘खुरसी’ बर ललचावत हावंय परचार करय बर पियत […]