जग अंधियारी छा गे हवय, मन ला कईस उजियारंव गा। आ जतेस तै सुरूज देवता, बिनती तोर मनावंव गा॥ कारी अंधियारी बादर, हफ्ता भर ले छाय हवय, शीत लहर के मारे, देहें सरी कंपकपाए हवय। यहां मांग-पूस मं, सावन कस बरसत हे, कोन परदेस गे तैं, दरस नई मिलत हे॥ कतेक दु:ख ला गोठियावंय मय, […]
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