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कविता

बरस जा बादर, किसानी के दिन अउ योग करो

बरस जा बादर
बरस जा बादर, गिर जा पानी, देखत हावन।
तरसत हावन, तोर दरस बर, कहाँ जावन।
आथे बादर, लालच देके, तुरंत भगाथे।
गिरही पानी, अब तो कहिके, आश जगाथे।
सुक्खा हावय, खेत खार हा, कइसे बोवन।
बइठे हावन, तोर अगोरा, सबझन रोवन।
झमाझम अब, गिर जा पानी, हाथ जोरत हन।
सबो किसान के, सुसी बुता दे, पाँव परत हन।




किसानी के दिन
आ गे दिन किसानी के अब, नाँगर धरे किसान।
खातू कचरा डारत हावय, मिल के दूनों मितान।
गाड़ा कोप्पर टूटहा परे, वोला अब सिरजावे।
खूंटा पटनी छोल छाल के, कोल्लर ला लगावे।
एसो असकूड़ टूटे हावय, नावा ले के लाये।
ढील्ला हावय चक्का दूनों, बाट ला चढ़ाये।
पैरा भूसा बाहिर हावय, कोठार मा रखवावय।
ओदर गेहे बियारा भाँड़ी, माटी मा छबनावय।




योग करो
योग करो भई योग करो,
सुबे शाम सब योग करो।
मिल जुल के सब लोग करो,
ताज़ा हवा के भोग करो।
योग करो भई योग करो। ।

जल्दी उठ के दंउड लगाओ,
आगे पीछे हाथ घुमाओ।
कसरत अऊ दंड बैठक लगाओ,
शरीर ल निरोग बनाओ।
प्राणायाम अऊ ध्यान करो।
योग करो भई योग करो। ।

सुबे शाम सब घुमे ल जाओ,
शुद्ध हवा ल रोज के पाओ।
ताजा ताजा फल ल खाओ,
शरीर ल मजबूत बनाओ।
नियम संयम के पालन करो,
योग करो भई योग करो। ।

जेहा करथे रोज के योग,
वोला नइ होवय कुछु रोग,
उमर ओकर बढ़ जाथे,
हंसी खुशी से दिन बिताथे।
रोज हाँस के जीये करो।
योग करो भई योग करो। ।

रात दिन के चिंता छोड़,
योग से अपन नाता जोड़।
नशा पानी ल तैंहा छोड़,
बात मान ले तैंहा मोर।
लइका सियान सब लोग करो,
योग करो भई योग करो। ।

योग करो भई योग करो
सुबे शाम सब योग करो ….

-महेन्द्र देवांगन माटी
पंडरिया (कबीरधाम)
छत्तीसगढ़
8602407353
Mahendradewanganmati@gmail.com