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अनुवाद : पतंगसाज (The Kite Maker)

Kiteमूल कहानी: The Kite Maker
कथाकार: RUSKIN BOND (रस्किन बांड)
अनुवादक – कुबेर

एक बहुत जुन्ना मस्जिद, जउन ह खण्डहर हो गे रिहिस, नमाजी मन जिहाँ नमाज पढ़ना छोड़ देय रिहिन हे, के दीवाल के दर्रा म एक ठन बर रूख जाम गे रिहिस। ये गली म, जउन ह गली राम नाथ के नाम से प्रसिद्ध रिहिस, खाली इही एके ठन पेड़ रिहिस, अउ येकरे डंगाली म छोटकू, अली के पतंग ह टंगा गे रिहिस।
लइका ह, खाली पांव अउ सिरिफ चिरहा कुरता भर पहिरे, अपन इही संकुरी गली के धरहा पथरा के ऊपर (अपन घर कोती) दँउड़े जावत रिहिस, जिंहा आँगन के पिछवाड़ा म वोकर डोकरा बबा ह अपन मुडी ल डोलावत दिन के अँजोर म घला सपना देखत बइठे रिहिस।
’’बबा, बबा!’’ लइका ह चिल्लाइस, ’’पतंग ह चल दिस।’’
डोकरा ह झकनका के अपन सपना ले जागिस अउ मुड़ी उचा के, अपन पक्का दाढ़ी संग खेलत जेला मेंहदी रचा के अभी तक रंगे नइ गे रिहिस, देखिस।
’’वोकर डोरी ह टूट गिस का?’’ वो ह पूछिस। ’’मंय ह जानथंव, वो पतंग के डोरी ह वइसन नइ रिहिस, जइसन होना चाही।’’
’’नहीं बबा! पतंग ह बर रूख म अटक गिस हे।’’
डोकरा ह खुलखुल-खुलखुल हँासिस। ’’मोर छुटकू, तोला अभी ले घला पतंग उड़य बर नइ आइस। अउ तोला सिखाय के अब मोर उमर नइ हे। बस अतका बात हे। फेर कोई बात नही, दूसर ले जा।’’ अभी-अभी वो ह बांस के बान, कागज अउ झेंझरहू सिलकन कपड़ा ले एक ठन नवा पतंग बना के वोला सुखाय बर घाम म मड़ाय रिहिस। ये ह पींयर-गुलापी रंग के रिहिस, हरियर पूछी वाले। डोकरा ह येला अली ल दे दिस, अउ अली ह अपन दुनों एड़ी मन ल उठा के खुद ल उचाइस अउ डोकरा के चेपलवा गाल मन ल चूम लिस।
’’येला मंय ह नइ गवांव,’’ वो ह किहिस, ’’ये पतंग ह तो चिरइ मन सही उड़ही।’’
अउ वो ह अपन एड़ी के बल घूमिस अउ देखते-देखत गायब हो गिस।
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घाम तापत-तापत डोकरा ह अपन सपना म फेर खो गिस। वोकर पतंग के दुकान ह उरक गिस, दुकान अउ वोकर सबो समान ल बहुत साल पहिलिच् वो ह एक झन कबाड़ी वाले तीर बेच देय रिहिस। फेर अपन मन-बहलाय बर अउ अपन छुटकू, नाती अली के खेले बर वो ह आजो घला पतंग बनाय के काम ल नइ छोड़े हे। आजकल के जमाना म पतंग के खरीददार जादा नइ रहि गिन। बड़े मन अब येकर तिरस्कार करथें, लइका मन अपन पइसा ल सिनेमा देखे म खरचा करना चाहथें। येकर अलावा पतंग उड़ाय बर अब जघच् कतका बचे हे। शहर ह (पतंग बाजी के) हरा-भरा मैदान ल लील डारिस जउन ह जुन्ना किला के दीवाल ले लेके नदिया के करार तक फैले रिहिस।
फेर डोकरा ह वो जमाना के सुरता करथे जब मैदान म इक्का-दुक्का पतंग उड़तिस अउ देखते-देखत पतंगबाजी के महाभारत शुरू हो जातिस। जब तक कोनो एक ठन पतंग के डोरी ह कटा नइ जातिस, पतंग मन ह घूम-घूम के एक दूसर ऊपर झपट्टा मारतिन, अउ गुत्थमगुत्था हो जातिन। तब हारे, पन सुतन्त्र पतंग ह तंउरत-तंउरत नीला अगास म कोन जानी कोन लोक म गायब हो जातिस। बड़े-बड़े बाजी लगतिस अउ पइसा ह सरलग येकर हाथ ले वोकर हाथ किंजरत रहितिस।
तब पतंगबाजी ह नवाब अउ राजा-महाराजा मन के खेल रिहिस। डोकरा ह सुरता करथे कि ठाट-बाट के वो जमाना म तब कइसे नवाब अउ राजा-महाराजा मन खुद हो के अपन सब संगी-संगवारी अउ हितु-पिरीतु मन संग नदिया के खड़ोर म सकला जातिन। कागज के ये नचकार संग हँसी-खुशी म समय बिताय बर तब लोगन कना बहुत समय रहय। अब तो हर आदमी ल जल्दी हे, काम सधाय के जल्दी हे, अउ जल्दबाजी म पतंगबाजी अउ दिनमान के सपना देखई, जइसन नाजुक चीज ल अपन पाँव तरी रमजत जावत हें।
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पतंगसाज महमूद, जब वोकर जीवन के अच्छा दिन रिहिस, ये शहर म भला वोला कोन नइ जानय? नवा-नवा ढंग, नवा-नवा डिजाइन के वो ह पतंग बनातिस, अउ वोकर बनाय कतरो पतंग मन ह तीन अउ चार रूपिया तक म बेचा जातिस। नवाब के कहे म एक घांव वो ह बड़ विचित्र ढंग के पतंग बनाय रिहिस; अतका विचित्र ढंग के कि वइसन पतंग वो जिला भर के कोनो आदमी ह कभू कहीं नइ देखे रिहिन हें। येला बहुत पतला कागज के नान्हें-नान्हें ढेर सारा चकती मन ल, कमचील के बारीक-बारीक बांक के चौंखटा मन म लगा-लगा के, लाइन से एक के पीछू दूसर ल जोड़-जोड़ के बनाय गे रिहिस हे। डगमगाय झन कहिके (बैलेंस बनाय खातिर) वो ह कागज के सबो चकती मन के आखिरी छोर मन म दूबी के डारा मन ल बांध देय रिहिस। सबले अव्वल नंबर के चकती के ऊपर वाले भाग ह थोकुन डिपरहा रिहिस, अउ वोमा बड़ मजेदार चेहरा के पेंटिग करे गे रिहिस हे, जेमा नान्हंे-नान्हें गोेल दर्पण के दू ठन आँखी बनाय गे रिहिस। मुड़ी कोती के चकती ह सबले बड़े, फेर वोकर पीछू वाले मन छोटे, अउ छोटे, अउ सबले आखरी वाले ह सबले छोटे रिहिस जेकर ले वो पतंग ह जमीन म रेंगने वाला कोनों अजीब अउ भयंकर डरावना प्राणी कस दिखत रहय। भारीभरकम ये पतंग ल जमीन ले ऊपर उठा के उड़ाय बर बड़ भारी कलाकारी के जरूरत रिहिस अउ ये काम ल खाली महमूदेच् ह कर सकत रिहिस।
येमा कोई शक के बात नइ रिहिस, हर आदमी ह सुन डरे रिहिस कि महमूद ह बड़भारी अजगर सरीख (ड्रेगन) पतंग बनाय हे, अउ चारों कोती यहू अफवाह बगर गे रिहिस कि वोकर भीतर मरी-मसान के पइधारो हो गे हे। जब मैदान म वोला नवाब के आगू, जनता के बीच पहली घांव उड़ाय गिस, वो दिन बड़ भारी भीड़ जुरिया गे रिहिस। पहिली कोशिश म तो वो पतंग ह हालिस तको नहीं। वोकर चकती मन ह भयंकर अवाज करिन अउ गरगरा के उड़े बर इनकार कर दिन, वोकर आँखी मन म सुरूज ह चमकत रहय, अउ वो पतंग ह सचमुच के जीता-जागता कोनो भयंकर जीव कस दिखत रहय।
अउ तभे सही दिशा डहर ले अच्छा, बने ढंग के पवन चले के शुरू होइस अउ वो राक्षस बरोबर पतंग ह हवा म तंउरे लगिस, ऊपर, अउ ऊपर जाय बर छटपटाय लगिस, कांच के वोकर आँखीं मन ह सुरूज म डरडरान असन चमकत रहय। वो पतंग ह जब भयंकर जोर लगा के डोरी ल खींचे लगिस तब महमूद के बेटा मन ह घला वोला संभाले बर मदद करे लगिन। तभो ले वो पतंग ह खींचते गिस, मुक्त होय के चाह म, अपन जीवन ल सुतंत्र ढंग ले जीये बर।
अउ तब विही होइस जउन होना रिहिस। डोरी ह टूट गे, पतंग ह सूरज के दिशा म गोता खाय लगिस अउ अंत म उड़त-उड़त आँखी ले ओझल हो गे। वो ह फेर कभू नइ मिलिस, अउ पीछू चल के महमूद ल खुदे अचरज होइस कि वो ह अतका जीता-जागता, जीवित प्राणी कस पतंग बनाय रिहिस। वोकर बाद वो ह वइसन पतंग अउ नइ बनाइस, फेर वोकर बदला वो ह नवाब ल भेट करे खातिर एक ठन संगीत के सुर निकालने वाला पतंग (म्यूजिकल काइट) बनाइस जउन ह उड़े के समय वीणा के धुन कस अवाज करे।
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हाँ! तब वो ह फुरसत के जमाना रिहिस। फेर बहुत साल पहिली नवाब के फौत हो गे; वोकर वंशज मन गरीब हो गें, महमूदे के समान। पतंगसाज मन के, कवि मन के, विही मन तो माई-बाप रिहिन; महमूद के अब कोई नइ रहि गिस। वोकर अब कोनों पुछंता नइ रहि गिस, वोकर नाम अउ वोकर धंधा सब उरक गिस, अब हालाकि ये गली म हजारों आदमी रहिथें, फेर अपन पड़ोसी के चिंता कोनों नइ करंय।
जब वो ह छोटे रिहिस अउ बीमार पडे़ रिहिस, तब अड़ोसी-पड़ोसी मन रहि-रहि के वोकर हालचाल पूछे बर आवंय। अब जब वोकर जीवन के अंतिम समय आवत हे, वोला देखे बर कोनो नइ आवंय। वोकर जुन्ना संगवारी मन म जादातर गुजर गे हें। वोकर (महमूद के) लइका मन जवान हो गे हंे; एक झन ह विहिचे एक ठन गैरेज म काम करथे, दूसर ह देश के बंटवारा के समय पाकिस्तान म जा के बस गिस।
जउन लइका मन दस साल पहिली वोकर ले पतंग बिसावंय, वहू मन अब जवान हो गे हंे; अपन घर-परिवार चलाय बर मरत-खपत हें, ये डोकरा बर अउ वोकर हालचाल पूछे बर उँकरो मन तीर अब समय नइ हे। छिन-छिन म तेजी से बदलत, कंपीटीसन के ये युग म उँकर नजर म पतंग बनइया ये डोकरा अउ वो बरगद के जुन्ना पेड़ म कोनों फरक नइ हे। दुनांे झन ले अब कोनों ल कोई सरोकार नइ हे, चारों मुड़ा ले वो मन आदमी अउ आदमी के भीड़ ले घिरे हें, फेर उँकर मन बर वो मन बीते जुग के फालतू चीज बरोबर होे गे हें। जादा दिन नइ होय हे, पारा भर के आदमी बरगद के छाँव म जुरियातिन, अपन समस्या के बारे म चर्चा करतिन (दुख-पीरा के गोठ ल गोठियातिन), नवा काम के योजना बनातिन; अब तो कोनों-कोनों भूले-भटके मन खाली गर्मी के दिन म सूरज के ताप ले बचे खातिर, सुस्ताय बर येकर छाँव म आ जाथें।
फेर, अब तो वोकर फिकर करइया एके झन बाच गे हे, वोकर नाती। एक बात अच्छा हे कि वोकर बेटा ह वोकर नजीके म काम करथे, वो अउ वोकर दमाद मन वोकरे घर म रहिथें। जब वो ह अपन नाती ल ठंड के सुहाती घाम म खेलत देखथे, डट के खातू-पानी म दिन-दिन हरियवात, नवा-नवा डारा-पाना उल्होवत कोनों पेड़ कस जवान होवत देखथे, तब वोकर हिरदे ह गद्गद् हो जाथे।
पेड़ अउ आदमी म गजब के बराबरी हे। दुनों मन एक जइसे बाढ़थें, यदि कोनों इनला नुकसान झन पहुँचांय, या खाय-पिये म कमी झन होय, या कोनों कांटे झन। अपन जवानी के दिन म ये मन बड़ा दिव्य (मस्त-मलंग) लगथें अउ बुढ़पा के दिन म इंकर कनिहा ह नव जाथे। बीते जुग के सुरता करथें, अपन कमजोर बाजू मन ल सूरज के अंजोर डहर उठाथें, आह भरथें अउ अपन अंतिम पाना के झरत ले झांव करत रहिथें।
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महमूद ह घला बरगद के पेड़ कस हे, जेकर हाथ मन ह अब बंधा गे हे, कोनों जुन्नेट पेड़ के जर मन सरीख अँइठ गे हें। अली ह आँगन के छोर म (अभी-अभी) जामत छुईमुई के पेड़ कस हे। पीछू दू साल म दूनों झन, वो अउ वो पेड़ ताकत अउ आत्मविश्वास बटोरत आवत हें जउन ह जवान मन के विशेष लक्षण होथे।
गली के अवाज ह धीरे-धीरे मद्धिम पड़त गिस, महमूद ल अचरज होइस कि कहीं वोला नींद तो नइ आवत हे अउ वो ह जइसे अक्सर वोकर संग होथे सपना देखे लगिस कि वो ह हिन्दू मन के भगवान विष्णु के प्रसिद्ध सवारी, दुधिया सफेद रंग के सुंदर, ताकतवर पंछी, गरूड़ के समान एक ठन सुंदर बड़ेजन पतंग बनावत हे।
वो ह अपन नाती अली बर अइसने एक ठन अद्भुत पतंग बनाय के अक्सर सोचय। वोकर तीर अउ तो कुछू नइ रिहिस, लइका खातिर छोड़ के जाय बर।
थोरिक दुरिहा ले वो ह अली के अवाज सुनिस, फेर वोला परतिंग नइ होइस कि लइका ह विही ल पुकारत हे। अइसे लगिस कि अवाज ह बहुत दुरिहा ले आवत हे।
अली ह आँगन के मुहाटी म खड़े हो के पूछत रिहिस कि वोकर माँ ह अभी तक बजार ले लहुटिस कि नहीं। जब महमूद ह कोनों जवाब नइ दिस, लइका ह नजीक आ के अपन सवाल ल दुहराइस। सूरज के तिरछा किरण ह वोकर चेहरा म चमकत रहय, एक ठन नानुक तितली ह वोकर हवा म लहरावत दाढ़ी म बसेरा कर ले रहय। महमूद ह एकदम शांत परे रहय; अउ जब अली ह अपन छोटे-से भुरवा हाथ ल वोकर खांद म मड़ाइस, वो ह कोनों हरकत (चिटपोट) नइ करिस। लइका ह एकदम मद्धिम अवाज सुनिस, जइसे वोकर जेब म रखे बाँटी मन ह रगड़ावत होंय।
घबरा के अचानक अली ह घूमिस, मुहाटी तीर गिस, अउ अपन माँ ल पुकारत वो ह गली म भग गिस। अउ तभे अचानक हवा के ताजा झोंका आइस, अउ बरगद के वो पेड़ म अटके वो पतंग ल उड़ा के ले गिस, रात-दिन संघर्षरत (हाय-हाय करत) अउ थकेमंदे ये शहर ले दुरिहा, नीला अगास म ऊपर, अउ ऊपर।
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कुबेर


KUBERकथाकार – कुबेर
जन्मतिथि – 16 जून 1956
प्रकाशित कृतियाँ
1 – भूखमापी यंत्र (कविता संग्रह) 2003
2 – उजाले की नीयत (कहानी संग्रह) 2009
3 – भोलापुर के कहानी (छत्‍तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2010
4 – कहा नहीं (छत्‍तीसगढ़ी कहानी संग्रह) 2011
5 – छत्‍तीसगढ़ी कथा-कंथली (छत्‍तीसगढ़ी लोककथा संग्रह 2013)
प्रकाशन की प्रक्रिया में
1 – माइक्रो कविता और दसवाँ रस (व्यंग्य संग्रह)
2 – और कितने सबूत चाहिये (कविता संग्रह)
3 – ढाई आखर प्रेम के (अंग्रेजी कहानियों का छत्तीसगढ़ी अनुवाद)
संपादित कृतियाँ
1 – साकेत साहित्य परिषद् की स्मारिका 2006, 2007, 2008, 2009, 2010
2 – शासकीय उच्चतर माध्य. शाला कन्हारपुरी की पत्रिका ’नव-बिहान’ 2010, 2011
सम्मान
गजानन माधव मुक्तिबोध साहित्य सम्मान 2012, जिला प्रशासन राजनांदगाँव
(मुख्‍यमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा)
पता
ग्राम – भोड़िया, पो. – सिंघोला, जिला – राजनांदगाँव (छ.ग.), पिन 491441
संप्रति
व्याख्याता,
शास. उच्च. माध्य. शाला कन्हारपुरी, वार्ड 28, राजनांदगँव (छ.ग.)
मो. – 9407685557
E mail : kubersinghsahu@gmail.com