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भाषांतर : एक महिला के चित्र (मूल रचना – खुशवंत सिंह. अनुवाद – कुबेर )


छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य म अनुवाद के परम्‍परा ‘कामेडी आफ इरर’ के छत्‍तीसगढ़ी अनुवाद ले चालू होए हावय तउन हा धीरे बांधे आज तक ले चलत हावय. छत्‍तीसगढ़ी म अनुवाद साहित्‍य उपर काम कमें होए हावय तेखर सेती अनुवाद रचना मन के कमी हावय. दूसर भाखा के साहित्‍य के जब हमर छत्‍तीसगढ़ भाखा म अनुवाद होही तभे हमन दूसर भाखा के साहित्‍य अउ संस्‍कृति ला बने सहिन समझ पाबोन. येखर ले दूसर भाखा के साहित्‍य के रूप रचना अउ अंतस के संदेसा ला हमन जानबोन अउ अपन भाखा के रचना उन्‍नति खातिर अपन सोंच के विकास कर पाबोन. इही कड़ी म छत्‍तीसगढ़ी अउ हिन्‍दी साहित्‍य म सरलग लिखईया हमर मयारू बड़े भाई कुबेर जी ह हमला दूसर कड़ी के रूप म हमर देस के नामकड़ी लेखक खुसवंत सिंह के रचना के अनुवाद ‘गुरतुर गोठ’ के पाठक मन बर भेजे हांवय. अनुवाद अउ रचना कईसे लगिस हमला टिप्‍पणी करके बताए के किरपा करहू. …. संपादक


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THE PORTRAIT OF A  LADY 1मोरो दादी (डोकरी दाई) ह, जइसे सबके दादी मन होथें, सियान महिला रिहिस। बीस बरस ले, जब ले मंय ह वोला जानत रेहेंव, चइसनेच् रिहिस, निचट सियान झुरझुराय मुँहू-कान वाले।
जानकार मन कहिथे कि पहिली वो ह जवान अउ बिकट खूबसूरत रिहिस, अउ यहाँ तक कि वोकर घरवाला घला रिहिस, फेर ये बात मन म मोला कभू विश्वास नइ होइस।
मोर दादा के चित्र ह बैठक खोली म दिवाल ऊपर बने आला म टंगाय रहय। वोमा वो ह बड़े जन पगड़ी अउ झोलंग-झालंग कुरता पहिरे रहय। वोकर पक्का अउ लंबा दाढ़ी ह छाती के आवत ले झूलत रहय अउ वो ह सौ बरिस ले कम उमर के नइ दिखय।
दादी ह हमला, वो ह अपन लइकईपन म जउन खेल खेलय तेकर बारे म बतातेच् रहय। वो बात ह हमला बिलकुल दूसर दुनिया के बात कस लगय अउ वोला हमन वोकर पोथी-पुरान के दंतकथा मान लेवन, जउन ल वो ह अक्सर बतात रहय। वो ह कद म ठिगनी अउ मोट्ठी रिहिस, अउ कनिहा ह थोकुन नव गे रिहिस। वोकर मुँहू ह झुर्री ले भरे रिहिस। वो ह कभू खूबसूरत नइ रिहिस होही, फेर वो ह सदा सुंदर रिहिस। वो ह हरदम झक सफेद कपड़ा पहिरे, अपन नवे शरीर ल साधे बर एक हाथ म कनिहा ल धरे, दूसर हाथ म कंठी-माला फेरत, मनेमन कुछू जपत, खोरात-खोरात घर भर म एतीवोती किंजरत रहय। वोकर चाँदी जइसे सफेद खुल्ला चूँदी मन सदा वोकर पींयर अउ मुरझुराय चेहरा ल तोपे रहय, वोकर होठ मन हरदम सरलग हलत रहय अउ वो ह को जानी का-का प्रार्थना करते रहय; जउन ह न तो कोनों ल सुनावय, न समझ म आवय।
मोर दादी अउ मंय पक्का मितान रेहेन। जब मोर मां-बाप मन शहर म रेहे बर गिन, वो मन मोला दादी तीर छोड़ दिन, अउ तब ले सरलग हमन संघरा रहत आवत रेहेन। वो ह मोला होत बिहिनिया उठा देय अउ स्कूल जाय बर तियार कर देय। जब वो ह मोला नंहवाय अउ डरेस पहिराय तब वो ह बिहिनिया के अपन एकसुर्री प्रार्थना ल सरलग गावत रहय, ये समझ के कि मंय ह वोला धियान लगा के सुनथंव अउ वोकर अरथ ल समझथंव, मंय ह वोकर गीत ल धियान लगा के सुनंव, काबर के वोकर अवाज ह मोला बने लगय; फेर वोला सीखे बर मय ह कभू कोशिश नइ करेंव।
बिहिनिया नास्ता म वो ह मोला रात-कुन के बचल मोट्ठा-मोट्ठा बासी रोटी मन म घींव चुपर के शक्कर के संग देवय जउन ल खा के हमन स्कूल जावन। वो ह गाँव के कुकुर मन बर बिकट कन मोट्ठा-मोट्ठा बासी-रोटी मन ल मोटिया के धर ले रहय।
मोर दादी ह हरदम मोर संग सकूल जावय, काबर कि हमर स्कूल ह मंदिर ले जुड़े रिहिस हे। पुजारी ह हमला वर्णमाला अउ बिहिनिया के प्रार्थना सिखावय। जब हम सब लइका मन परछी म दूनों बाजू लाइन म बइठ के एक सुर म वर्णमाला अउ प्रार्थना रटन, दादी ह भीतर बइठ के गरंथ पढ़त रहय। जब हमर दुनों के काम उरक जाय, हम दुनों झन संघरा घर आय बर निकल जावन। इही समय गाँव के सबो कुकुर मन हमला मंदिर के मुहाटी म जोरियाय मिल जावंय। ये मन ह हमर पीछू-पीछू रोटी खातिर, जउन ल मोर दादी ह ऊकरे मन बर टोर-टोर के फेंकत जावय, एक दूसर ले लड़त-झगड़त हमर घर तक आवंय।

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जब मोर मां-बाप के कारेबार ह शहर म बने जम गे, वो मन हमू मन ल बला लिन। इही ह महर दुनों झन के मितानी बर नवा दिन के शुरूआत हो गे। भले हमन एके खोली म रहन, मोर दादी ह जादा दिन ले मोर संग स्कूल नइ जा सकिस। मंय ह पढ़े बर बस म बइठ के अंग्रेजी सकूल जावंव। उहाँ न तो कोनों गली रहय, न एको ठन कुकुर; इही पाय के मोर दादी ह घर के आंगन म बइठ के गौरइया चिरई मन ल चारा खवात रहय।
जइसे-जइसे समय बीतत गिस, हमन के एक-दूसर ले मिलना कम होवत गिस। थोरिक दिन ले बिहिनिया मोला जगाय के अउ स्कूल बर तियार करे के वोकर काम चलिस। जब मंय ह स्कूल ले वापिस आवंव, वो ह मोला पूछय कि आज गुरूजी ह तोला का-का पढ़ाइस। अंग्रेजी के जउन शब्द मन ल सीख के मंय ह आय रहंव तउन ल, अउ विदेशी विज्ञान के बात ल, जइसे कि गुरूत्वाकर्षण के नियम, आर्किमिडीज के सिद्धांत, धरती ह सूरज के चारों मुड़ा कइसे घूमत हे, आदि … बात मन ल वोला बतावंव। येकर ले वो ह गुसिया जावय। एक दिन मंय ह घर म सब ल बतायेंव कि आज ले हमन के संगीत के पाठ शुरू हो गे हे। वो ह एकदम उदास हो गे। वोकर बर संगीत मतलब लम्पट मन के संगत करना रिहिस। ये ह तो सिरिफ रण्डी मन के अउ भिखारी मन के काम आवय, खानदानी धराना के नइ। अब वो ह मोर संग कभुच्-कभू गोठियावय।
जब मंय ह कॉलेज म गेव, मोर बर अलग खोली के बेवस्था कर दे गिस। हमर मिताई के बीच जउन अधार रिहिस हे, वो ह अब टूट गे। जब वो ह परछी म रोटी के नान-नान कुटका करत बइठे रहय, कोरी-खरिका नान-नान चिरई मन को जानी कहाँ ले आ के वोकर चारों मुड़ा सकला जावंय, अउ उँकर चींव-चांव करइ म घर ह पागलखाना बरोबर लगे लगय। कतरो मन वोकर गोड़ मन म आ के बइठ जावंय, कतरो मन ह वोकर खांद म, अउ वोकर मुड़ी घला दू-चार ठन मन बइठ जावंय। वो ह हाँसे फेर वो मन ल कभू नइ भगावय। रोज एक-डेड़ घंटा ह वोकर अइसने मजा-मजा म बीतय।

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जब आगू के पढ़ाई बर मंय ह विदेश जाय के निर्णय करेंव, मोला पक्का पता हे कि मोर दादी ह एकदम परेशान हो गे। मोला पाँच साल दुरिहा रहना हे अउ वोकर ये उमर म, कोनों घला होतिस, जाय बर नइ कहितिस, का पता संास ह कब थम जाय। फेर मोर दादी ह मोला नइ छंेकिस। वो ह मोला बिदा करे बर रेलवे टेसन आइस, न तो कुछु किहिस अउ न एको कनी भावुक होइस। वोकर ओंठ मन ह प्रार्थना म सरलग हालत रिहिन, वोकर दिमाग ह घला प्रार्थनच् म लगे रिहिस। वोकर अंगरी मन माला फेरे म लगे रिहिन। चुपचाप वो ह मोर माथ ल चूम लिस।
फेर वइसे नइ होइस। पांच बछर बिता के जब मंय ह लहुट के घर आयेंव, मोला लेगे बर वो ह रेलवे टेसन आय रहय। पांच बछिर पहिली जइसन रिहिस, वइसनेच दिखत रिहिस, वोकर बुढ़पा ह एक दिन घला जादा नइ लगत रहय। वो दिन जइसे आजो घला वो ह कुछू नइ किहिस अउ मोला पोटार लिस। वोकर गायन अउ वोकर प्रार्थना ल मंय सुन सकत रेहेंव। मोर घर लहुटे के पहिली दिन वो ह अपन गौरइया चिरई मन ल चारा खवात अउ वो मन ल मया म खेदारत, बड़ मजा म बिताइस।
सांझ कुन वोकर व्यवहार म थोकुन बदलाव आ गे। वो दिन वो ह प्रार्थना नइ करिस। आरा-पारा के जम्मों माईलोगन मन ल वो घर म सकेल डरिस, कहाँ ले एक ठन जुन्ना ढोलक भिडा़ डरिस, अउ गाय-बजाय के शुरू हो गे। को जनी के घंटा ले गाइन-बजाइन। जुन्ना ढोलक के झोरकहा चमड़ा म थाप दे दे के वो ह, जब कोनों रणबांकुर ह लड़ाई जीत के आथे, वो समय के गीत ल गावत गिस। वोला हम समझा-समझा के थक गेन कि अब बंद करव, जादा म थक के पस्त हो जाहू। वो दिन ह मोर जानत म पहिली दिन रिहिस, जब वो ह प्रार्थना नइ करिस।
दूसर दिन बिहिनिया वो ह बिमार पड़ गे। वो ह केहे लगिस के अब वोकर अंत आ गे हे। वो ह केहे लगिस कि, वोकर जीवन के पहिली अध्याय पूरा होय के कुछ घंटा पहिलिच वो ह प्रार्थना करे म चूक करे हे, अब वो ह आखिरी समय म हमर संग गोठ-बात करके अउ समय नइ गंवाना चाहय।
हम वोकर बात के विरोध करेन; फेर वो ह हमर विरोध ऊपर कोई ध्यान नइ दिस। वो ह एकदम शांत बिस्तर म लेटे रिहिस; वोकर प्रार्थना अउ माला फेरना जारी रिहिस। हमला कोनों अनहोनी के शंका होतिस, येकर पहिलिच वोकर होंठ के हिलना बंद हो गे निर्जीव अंगरी मन ले छूट के वोकर माला ह गिर गे। वोकर चेहरा म एक शांत पीलापन पसर गे अउ हमन जान गेन कि अब वो ह हमला छोड़ के चल दिस।
परंपरा मुताबिक वोला हमन बिस्तर ले उतार के जमीन म लेटायेन अउ वोला लाल कफन ओढ़ा देयेन। कुछ घंटा बाद हमन वोला अकेला छोड़ के वोकर क्रिया-करम के तियारी म लग गेयेन।
वोला अंतिम-क्रिया खातिर लेगे बर सांझकुन अर्थी सजा के हमन वोकर खोली म गेयेन। आंगन के बीच में हमन ठहर गेन। परछी म चारों मुड़ा अउ वोकर खोली म जिहाँ लाल कपड़ा म लिपटे वो ह पड़े रिहिस हजारों-हजार गौरइया चिरई मन फर्स म बइठे रहंय। कोई चिंव-चांव नहीं। देख के हमला दुख होइस, अउ मोर माता जी ह ऊँकर मन बर कुछ रोटी ले आइस। वो ह, जइसे कि मोर दादी ह करय, रोटी के नान-नान कुटका करके ऊँकर आगू म फेंक दिस। गौरइया मन रोटी ऊपर कोई ध्यान नइ दिन। जब हम दादी के अर्थी ल ले के चल देयेन, वो मन वइसनेच् बिना चींव-चांव करे, तुरंत चुपचाप उड़ गिन।
दूसर दिन बिहिनिया, झाड़ूदार ह रोटी के वो कुटका मन ल बहर के कचरा म डार दिस।
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Khusvant singhखुशवंत सिंह ह कोनों परिचय के मुहताज नइ हे; जम्मो पढ़इया-लिखइया संगी मन आज वोला जानथव। आप मन के जन्म 02 फरवरी 1915 ई. म HADALI, Dist- Khushab, Punjab (अब पाकिस्तान म) संपन्न सिक्ख परिवार म होय रिहिस। आपके पिता जी के नाव Sir Sobha Singh रिहिस।
आप मन हमर देश के जाने माने पत्रकार, इतिहासकार अउ साहित्यकार, हरो। आप के लेख हमर देश के जम्मों अखबार मन म छपत रहिथे जउन ल पढ़इया मन बड़ मन लगा के पढ़थें। आप अंग्रेजी म लिखथव।
1950 म आपके पहिली कहानी संग्रह The Marks of Vishnu And Other Stories मे छपिस, तब ले आज तक, 98 साल के अवस्था म आप सरलग लिखत आवत हव। आपके ताजा कृति There is no God हरे जेकर प्रकाशन 2012 म होइस।
1974 म भारत सरकार ह आप मन ल ’पद्म भूषण’ प्रदान करके सम्मानित करिस। 1984 म सिक्ख मन खिलाफ दंगा होइस जेकर विरोध म आप मन ये सम्मान ल भारत सरकार ल लहुटा देव। 2006 म पंजाब सरकार ह आप मन ल ’पंजाब रत्न’ के सम्मान ले सम्मानित करिस। आप ल भारत सरकार ह 2007 म ’पद्म विभूषण’ अलंकरण ले सम्मानित करिस। 2010 म आप ल ’साहित्य अकादमी फेलोशिप अवार्ड’ प्रदान करे गे हे।
संकलित कहानी म आप मन अपन दादी माँ के चौथा पन के जीवन के विषय म लिखे हव। मामूली लगने वाला ये कहानी ल पढ़ के प्रेम, धर्म अउ मोक्ष के अवधारण ल बहुत बढ़िया ढंग ले समझे जा सकथे। -अनुवादक


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KUBERकुबेर
व्याख्याता,
शासकीय उच्च. माध्यमिक शाला
कन्हारपुरी, वार्ड 28, राजनांदगाँव (छ.ग.)
पिन 491441
मोव. – 9407685557