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कविता

कइसे उदुप ले डोकरा होगे

कइसे उदुप ले डोकरा होगे
जंगल के बघवा तेंहा,
कइसे चऊंर–चाबे बोकरा होगे।
एक कोरी म छै बछर कम,
कइसे उदुप ले, डोकरा होगे।।
जौन आथे तौन, बखरी ला उजारथे।
पेट ला हमर काट के, देखावटी सुलारथे।
छत्तीसगढ़ ल चरागन भुंइया बना लीन,
चोरहा मन चौरस्ता म कोतवाल ल ललकारथे।
मिठलबरा मन के डिपरा पेट,
हमर बीता भर खोदरा होगे।
तोर रग रग म, पैरी महानदी उछलथे,
तोर बहां म सिहावा कांदा डोंगर उचकथे।
सुरूज कस जोत तोर आंखी बरथे।
तोर भाखा गरू, बादर असन गरजथे ॥
अपन आप ल पहिचान –
का धनुष कांड तोर भोथरा होगे ?
कचना धुरवा के बांध ले बाना, राजिम लोचन महमाई,
बिलई माता तोर संग म हाबे, डोंगरगढ़ बमलाई।
संगे संग तोर पवन चलत हे, बलकरहा मन के रद्दा जोहत हे।
हाथ गोड़ झटकार के, कयराहा ल फटकार के, अगुवा रे भाई।
देख, गुरमटिया के तैं ठिन्ना बीजा –
का डरेलहा गहूं चोकरा होगे ?
राड़ी रो के थिरागे, एंहवाती मन कब चुप होंही।
एकलौता मारिस, महतारी ला, दोगला मन कब सपूत होही।
बिन बादर बरसथे आंखी हा, कोन जनी कब धूप होही।
लोहा के डोरी सुरलागे, उसकाहा धागा का मजबूत होही।
छत्तीसगढ़ के कमाऊ जुझारू बेटा –
कइसे परबुधिया छोकरा होगे ?
जंगल के बघवा तेंहा,
कइसे चऊंर चाबे बोकरा होगे ॥

गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा
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