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व्यंग्य

अग्यातवास

अपन हक ले बंचित, पांडो मन के भाग म लिखाये अग्यातवास हा, कलजुग म घला पीछू नि छोरत रहय। अग्यातवास के कलजुगी समे म, द्वापर जुग कस, यक्छ ले इंखर मुलाखात, फूल टोरे के बहाना तरिया म फेर हो जथे। कलजुगिया यक्छ , फूल दे के बहाना, इंखर मन के योग्यता के परीकछा के बात घला करथे। बिगन परस्न के जवाब पाए, फूल दे बर मना कर देथे। पांडो मन, एक के पाछू एक, परीकछा म फेल होवत जाथे, अउ मूरछित होके भुंइया म गिरत जाथें। धरमराज हा फिकर करत, अपन भई मनला खोजे बर निकलिस, त देखथे, चारों भई मूरछित परे हे। मउका ल समझगे धरमराज। द्वापर के समे के खियाल आगे। सुरता आगे उही सब गोठ बात के, जेकर सेती, ओखर भई मन ला, यक्छ के परकोप सेहे परे रिहीस। दूसर कोती, यक्छ ल घला विस्वास रिथे के, इही मोर परस्न के समाधान करही। धरमराज ल , यक्छ जइसे देखथे, ओला सावधान करके, अपन परस्न ल सुरू करथे। के घांव परस्न के जवाब मांगही – अइसे धरमराज सोंचत हे। उही – उही परस्न ल फेर करही, उही – उही उत्तर ल फेर दूंहूं, अउ अपन भई मनला एकर चंगुल ले छोड़ा लूंहू।
यक्छ परस्न पूछना सुरू करत किहीस – भूखहा अऊ नंगरा कोन हे अभू ? परस्न के उत्तर बड़ सरल रिहीस। जेकर करा खाए के एक दाना निही, अउ कतको दिन ले, जेला खाए बर नि मिले हे, पहिरे बर जेकर करा चेंदरा निही, उही मनखे भूखहा अऊ नंगरा आय। फेर धरमराज सोंचिस, ये जवाब ल मोर भई मन घला दीस होही। धरमराज समझगे अऊ सोंचें लागिस – महू इही ल कहूं, तंहले, मोरो उप्पर भड़क जही यक्छ हा, अउ महू ल पानी मार के मूरछित कर दिही। अइसन म महूं एकर कैदी हो जहूं, त पांडोंमन के कुनबा खतम हो जही। अभू के इसथिती परिस्थिती ल धियान म रखके उत्तर दूंहू, तभे बांचहूं। धरमराज केहे लागिस – भूखहा वो नोहे जेकर तिर खाये बर दाना निये या जे कतको दिन ले खाये निये बलकि भूखहा वो आए जेहा, न केवल अपन बांटा के चीज ल खावत बोजत हे, बल्कि, दूसर के बांटा ल घला खा बोज के पचोवत हे, अऊ अपन लोग लइका मन बर अवेध किसिम ले सकेलत बटोरत हे। अउ अतकेच म मन नि माढ़त हे बैरी मन के, भूख अऊ कतको बाढ़तेच जावत हे। अउ नंगरा …., वो मनखे आए, जेमन झकाझक सादा कुरता म अपन आप ल लुका के, देस के पबरित जगा म नंगई करत हें। जेती देख तेती, नंगरा नाच हा जेकर इसारा म चलत हे, उही मन नंगरा आए। चेंदरा नि पहिरइया मनखे फकत बदन के नंगरा आए, फेर चाल अऊ चरित्तर ले नंगरा, ये सफेदहा कुरता वाला मन आए। यक्छ ला अपन परस्न के पूरा जवाब नई मिलिस, त वो फेर पूछे लागिस – तैं कइसे कहि सकत हस के, ये सफेद कुरता धोती वाला मन नंगरा आए, अउ बिन कपड़ा के मनखे, नंगरा नोहे ? धरमराज बतइस – कपड़ा के समबंध इज्जत तोपे ले होथे, गरीब करा न देखाए के कुछु, न तोपे बर कुछु, तेकर सेती, कुच्छूच लुकाए के जरूरत नइये वोला। अउ सफेद कुरताधारी मनखे मन के इज्जत म अतका टप्पर लग चुके हे के, उही ल घेरी बेरी तोपे के परयास म लगे रहिथें। एकर मतलब ये आय के जे नंगरा रहि, तिहीच तो तोपही अपन देहें ल। मोर समझ म, इही तोपइया मन नंगरा आए।
यक्छ के दूसर सवाल – ईमानदार कोन आए ? धरमराज समझगे रिहीस, एला कइसने उत्तर चाही। वो किथे – अभू ईमानदार उही मनखे आय, जेला बेईमानी के कोन्हो मउका नि मिले हे। जेला मउका मिलिस ओकर ईमानदारी कोन जनी, कते कोती धारे धार बोहागे।
ओकर तीसर परस्न – गरीब कोन ? धरमराज तियार रहय एकर बर। वोहा बताइस – गरीब वो नोहे जेकर करा जरूरत के धन सम्पत्ती नइये, अउ विलासिता के रंग रंग के समान नइये, गरीब वो आए, जे अरबों खरबों कमा के, सिरिफ पइसा के बारे म सोंचत रहिथें। केवल पइसा ल भगवान अउ आवसकता समझथे।
यक्छ संतुस्ट होवत जावत हे। चउथा परस्न करिस – चोर कोन आय ? धरमराज सोंच में परके केहे लगिस – इहां चोर केउ परकार के हाबे। फेर बड़का अउ देस ल बड़ नकसान पहुंचइया चोर वोमन आए, जे मन अवेध रूप ले सरकार के पइसा पचावत, देस ल चूना लगाके, देस बिदेस म चीज बस सकेलत हाबे। जे मनखे ला इल्जाम लगे उप्पर ले, बदनामी के डर नि रहय, देस ल फोंगला करइया उही मनखे मन चोर आय। यक्छ समझगे, अउ केहे लागिस, कास ……………. तोरे कस, जम्मो परानी देस के बारे में सोंचतिस, त देस के अतीत कस, वर्तमान अउ भविस्य घला सज संवर जतिस।
धरमराज थोकिन भाउक होगिस। तभे आखरी सवाल आगे – लचार, असहाय कोन हे ? देस के जनता – नानुक जवाब दिस धरमराज हा। यक्छ किथे – कइसे ? धरमराज बतइस – देस के जनता हा, हमेसा धोखेबाज, चालबाज, चोर – उचक्का, बेईमान, भरस्टाचारी मन ऊप्पर बिस्वास करके उनला, अपन अगुवा बनाथे, ओकर करा एकर अलावा अउ कोन्हो चारा निये। जनता अपनेच अगुवा मन के, लूट अऊ बलात्कार के सिकार हे, अउ हरेक दारी, अइसनेच मन ल, अपन अगुवा चुने बर मजबूर हे। अभू तुहीं मन बतावव – इंकर ले लचार अउ असहाय कोन हे ?
सब्बो सवाल के जवाब पागिस यक्छ हा। बड़ खुस होके केहे लागिस – मांग ले तोला जे चाही। मोर बस म होही, ते तोला जरूर दूहूं। धरमराज यक्छ के ताकत ल जानय, वोहा अपन चारों भई, अउ अपन गंवाए राज पाठ ल, वापिस मांग पारिस। यक्छ सकपकागे, धरमराज के आगू निकर के आगे अऊ केहे लागिस – तोर भई मन ल वापिस करत हंव मेहा। फेर तोर राज पाठ ल वापिस नि कर संकव, काबर, इहां लोकतंत्र हे अभू। इहां जनता अपन खेवनहार, अपन सरकार चुनथे। में सिरिफ बाहुबली हंव, फेर एकर दुरूपजोग नि जानव, तोर खातिर मय यहू करे बर तियार हो जतेंव, फेर इहां सरकार बनाए बर, बाहुबल के संगे संग, धनबल अउ छलबल के घला आवसकता परथे, धनबल में कतको कस दे दूंहूं, फेर मोर करा छलबल बिलकुलेच नइये। राज देवा दूहूं कहना सिरीफ कोरा आसवासन, अउ सही माने म लबारी छोर कहींच नोहे। वइसे सच गोठ तोला बतावंव धरमराज, तोर जइसे नियावप्रिय, सत्तवादी, ईमानदार अउ करतव्यनिस्ठ मनखे, ये देस म अब सासन करे के योग्य नइए। राज चलावन दे जुरजोधन मन ला। तैं लबारी नि मार सकस, खाए पतरी म छेदा नि कर सकस, कोन्हो बुरई के संग नि दे सकस, काकरो गलती के समरथन नि कर सकस, काकरो बुरा होवत देख नि सकस, काकरो बुरा कर नि सकस, तेकर सेती, तैं, राज चलाना तो बहुतेच दूरिहा, वो सभा समाज के डेरौठी म चढ़हे लइक घला नइ अस, जिंहा ले राज सनचालित होथे। तोर से मोर हाथ जोर के पराथना हे, तैं राजकाज के मोहो ल तियाग दे, अउ फेर वापिस रेंग अग्यातवास तनी, अउ तब तक अगोर, जब तक किरिस्न के अवतार नि होही तोर जीवन म। तब ले, धरमराज कलेचुप यक्छ के पांव परके, अपन भईमन के संग एती वोती लुकाए अग्यातवास म किंजरत हे । दूसर कोती जनता घला नी जानत हे के, धरमराज पांडो मन संग अभू घला अगियातवास म किंजरत हे। हरेक चुनई म, छल कपट के धरमराज ला, असली समझ खुरसी देवाये बर लकलका जथे बपरा जनता हा। जे आथे ते भरमा देथे के उही मन धरमराज आय। लुटेरा बईमान मन हरेक बेर खुरसी हथिया लेथे। पांच बछर जनता चुचुवावत रहिथे। पांच बछर पाछू दूसर आथे या उहीच हा दूसर बेर आथे तब फेर भरमाथे के, ये दारी तूमन ला धोखा नी मिलय हमन ला भगवान किरीस्न हा अगियातवास ले खोज के निकाले हे। अइसने धोखा उप्पर धोखा खावत सत्तर बछर पोहा जथे। जनता उहीच खंड़ म ठाढ‌भहे, बुढ़हावत मरत तरसत तलफत हे ………….। सिरतोन म, को जनी कब, सहींच के भगवान किरिस्न आही, अउ धरम के सासन इस्थापित करे बर, असली धरमराज ला खोज के, जनता के आगू लानही ?

हरिशंकर गजानंद देवांगन
छुरा