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गोठ बात

मोर ददा ला तनखा कब मिलही

दस बच्छर के नीतिन अउ एक महिना बड़े ओकर कका के बेटी टिया अँगना मा खेलत रहिस। दूनो मा कोन जनी काय सरत लगिस तब टिया हा कहे लगिस मेहा हार जहूँ ता मोर पइसा ला मोर पापा ला तनखा मिलही तब देहँव। नीतिन समझ नइ सकिस कि ओकर कका हा कहाँ ले तनखा पाथय,कोन ओला तनखा देथय। ओहा ओतका बेरा तो खेल लिहिस फेर ओखर मन मा बइठ गे कि हमर ददा ला तनखा कब मिलथे।
संझा नीतिन अपन ददा मोहन के रद्दा देखत रहय।खेत ले रापा ला खाँद मा डारे घर आवत देख के थोरिक खुश होय लगिस।हाथ मुहूँ धोके चहा पीये बर बइठिस ओतकी बेरा नीतिन अपन ददा ला पूछे लगिस, तोला तनखा कब मिलही। सात बच्छर के लइका के मुहूँ ले उदुपहा ये सवाल सुनके अकबका गे।
थोकिन स्वांस लेके अउ चाय ला चुहकत नीतिन ला कहिस- तोला कोन पूछिस हे बाबू? नीतिन कहिस- कोनों नइ पूछिस हे, टिया के पापा हा हर महिना तनखा पाथय, ओहा कहाँ ले पाथय? ओला कोन देथय।
मोहन अपन नानकन लइका के बड़े जबड़ सवाल के जुवाब देय बर लजलजहा होगे।फेर अपन लइका ला तो कइसनो करके भुलवारे लागही। मोहन कहिस- सुन बाबू! तोर कका हा सहर मा आफिस मा नौकरी करथे।सरकार अउ जनता के बुता करथे तब ओकर बदला मा सरकार ओला महिना पूरे के पाछू तनखा माने पइसा देथय। ओहा मिले पइसा ला अपन घर के साग भाजी, तेल नून, साबुन सोडा, कपड़ा लत्ता लेथय, घर के किराया, टिया के इस्कूल के फीस पटाथे। जइसे तुहँर इस्कूल के मास्टर साहब मन हा सब लइका ला दिनभर पढ़ाथे, ओकर सेती सरकार हा ओला तनखा देथय।अइने जौन मन सरकारी, गैरसरकारी, पराइवेट कंपनी, कारखाना, आफिस, दुकान मा बुता करथे, सबोमन तनखा पाथे।
नानकन नीतिन हा अपन ददा के जुवाप ला कलेचुप सुनत रहय। उदुपहा कहे लगिस- तोला काबर तनखा नइ मिलय, तहूँ हा सरकार बर धान बोथस, सरकारी सुसायटी मा लेगथस। फेर नानकन लइका के बड़का सवाल हा मोहन ला चुप्पा बना दिस। तभो ले कहिस- जौन हा नउकरी ,चाकरी करथे ओला तनखा ओखर मालिक मन देथय।ओहा छुट्टी घलाव अपन मालिक ला पूछ के लेथय।मैं मालिक आँव। अपन खेत के मालिक।मालिक ला कोन तनखा देही। मालिक हा तनखा देथय।
नीतिन फेर सवाल करिस- ता मालिक हा तो अमीर होथय। फेर हमन तो गरीब हन।कका मेर फटफटी हावय, एलइडी टीवी, कूलर, सोफा,दीवान, बइठ के खायबर कुर्सी, दर्पन वाले अलमारी हावय।हमर मन करा तो पंखा भर हवय, टीवी कतका जुन्ना होगे हवय। मालिक मन तो नवा नवा कुरता अंगरखा पहिरथे।मलकाइन हा सोन चांदी के गहनागुठा अउ रोज नवा लुगरा पहिरथे।फेर तँय तो मइलहा कुरता ला तीन दिन होगे पहिरे हावस।मोर पैंट हा कब के चिराय हावय।
हमर गुरुजी काहत रहिस कि किसान ला धरती के भगवान कहे जाथय। काबर कि किसान के उपजात अन्न ले मनखे अउ कतको जीव के पेट भरथय।अइसे तो मनखे ला छोड़ दूसर जीव जन्तु मन अपन खाय पीये के बेवस्था प्रकृति ले कर डारथे।सब अपन पेट भरेबर मिहनत करके खाथे।काली के चिंता मा कोनों जीव नइ रहय। मनखे हा चौरासी लाख जीव मा सबले अलगेच जीव आय। ओहा ये नइ जानय कि काली तक जीही कि स्वांस बंद हो जाही फेर लालच मा भरे मनखे सात पीढ़ी बर अन्न धन सकेलथय।
किसान सबके पेट भरइया, तन ढकइया, छत बनइया हरय। फेर आज ओ हा आत्महत्या अउ फाँसी चढ़इया बनगे हावय।किसान कर्जा मा लदाके कर्जादार बनत हावय। कभू प्रकृति के मार पीठ मा परथे। कभू कीरा मकोरा मन खातिर ता कभू हत्थी, बेंदरा, सूरा, भालू जइसन जीव हा फसल ला बरबाद कर देथय।
भगवान के किरपा ले जब फसल अउ उपज हा बने होथय तब ओला बजार मा सही भाव नइ मिलय। तब सड़क मा फेंके अउ ट्रेक्टर मा रउँदे के बुता होथय। काबर कि किसान ला ओकर उपज के वाजिब दाम नइ मिलय। पैदावारी जादा होगे तभो किसान ला घाटा होथय अउ कम होथय तब तो ओला लगाय लागत के पुरतन पइसा नइ मिलय। धान लुए के पाछू ओला सरकारी सुसायटी मा बेचेबर लेगथे। तौलभाँज करे के पाछू खाता मा पइसा मिलथे। ऊपर वाला भगवान के कोनों किसम के नराज हो जाथय तब धान पान कम हो जाथे। अंकाल हो जाथय।तब सरकार हा मुआवजा बाँटथय। अउ किसान ला थोकिन राहत देथय।
नानकन नीतिन के मन मा अबड़ अकन सवाल रहय कि जब खातू सरकार देथय, करजा सरकार देथय, सब्सिडी सरकार देथय, बीज, यूरिया, समर्थन मूल्य, बीमा सरकार देथय। सबो बुता सरकार करथे तब हर महिना तनखा काबर नइ दे सकय। सरकार के पढ़े लिखे अधिकारी मन किसान ला हर महिना तनखा देय के नियम काबर नइ बना सकय।
दस बच्छर के नानकन लइका के मति मा ये सवाल घेरी बेरी घुमथय कि दू भाई मा एक नउकरी वाला हे तब ओला हर महिना तनखा अउ दूसरा किसान हे तब ओहा गरीबी मा जीएबर मजबूर हे।
नीतिन ला अगोरा हे मोर ददा ला हर महिना तनखा कब मिलही।

हीरालाल गुरुजी “समय”
छुरा,जिला-गरियाबंद