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कहानी

नान्‍हे कहिनी : आवस्यकता

जब ले सुने रहिस,रामलाल के तन-मन म भुरी बरत रहिस। मार डरौं के मर जांव अइसे लगत रहिस। नामी आदमीं बर बदनामी घुट-घुट के मरना जस लगथे। घर पहुंचते साठ दुआरीच ले चिल्लाईस ‘‘ललिता! ये ललिता!‘‘ ललिता अपन कुरिया मं पढ़त रहिस। अंधर-झंवर अपन पुस्तक ल मंढ़ाके निकलिस। ‘‘हं पापा!‘‘ ओखर पापा के चेहरा, एक जमाना म रावन ह अपन भाई बिभिसन बर गुसियाए रहिस होही, तइसने बिकराल दिखत रहिस। दारू ओखर जीभ मं सरस्वती जस बिराजे रहिस अउ आंखी म आगी जस। कटकटावत बोलिस ‘‘मैं ये का सुनत हौं कुलबोरिक! … तैं, वो साले मोहन के टूरा संग बात करथस?घूमथस?.. आज के बाद कभू अइसन सुने म आइस त सुन ले‘‘ अंगरी उठा के खबरदार करिस ‘‘त भुला जाहौं के तैं मोर बेटी अस,भुला जाहौं के तोला बेटा जस पाले हौं,भुला जाहौं के महीं तोर ददा औं अउ दाई घलोक,भुला जाहौं के मोर दू लईका हें। सुन ले…आज के बाद तैं कहॅूं…।‘‘ ललिता फाइनल मं रहिस। सियान के इज्जत करना ओखर नस-नस म हे फेर गलत बात सुन के चुप रहि जाना ओखर आदत नइ रहिस। बोले के बेरा चुप रहे ले मनखे चार गोड़ के जानबर बन जाथे। जवाब देइस ‘‘मैं कोई गलती नइ करौं पापा! आज के भौतिक युग म अपन हेसियत बनाए बर,देखाए बर,झूठ,बईमानी जईसे आपके आवस्कता हे पापा, अईसने मोरो इच्छा होथे के कोनों मोला मया करै…ये मोर तन-मन के आवस्कता हे पापा।‘‘ अपन सब कुकरम, करोध के घुरूवा नारी जात ला बनइया पुरूस जात बर,ललिता आज जइसे बेसरम होगे रहिस। ‘‘अगर वो ह गलत नइहे त एहू गलत नइहे पापा।‘‘ बोलत ललिता अपन कुरिया म घुसरगे। रामलाल कठ खाए खड़े रहिगै।

केजवा राम साहू ‘तेजनाथ‘
बरदुली,कबीरधाम (छ.ग.)
मो. 7999385846