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प्रयोजनमूलक छत्तीसगढ़ी की शब्दावली – अव्यय

छत्तीसगढ़ी के अव्यय –
समुच्चय बोधक अव्यय
संयोजक – अउ, अउर
मैं अउ तैं एके संग रहिबोन।
वियोजक – कि, ते
रामू जाहि कि तैं जाबे।
विरोधदर्शक = फेर, लेकिन
संग म लेग जा फेर देखे रहिबे।
परिणतिवाचक = तो, ते, ते पाय के, धन
बुधारू बकिस ते पाय के झगरा होगे।
दिन-रात कमइस तभे तो पइसा सकेल पइस अउ अपन बेटी के बिहाव करिस।
आश्रय सूचक = जे, काबर, कि, जानौ (जाना-माना), मानौ (जाने-माने)
तैं ओला काबर बके होबे।
अइसन गोठियात हस जाना-माना तैं राजा भोज अस अउ मैं गगवा तेली।
विस्मयादिबोधक अव्यय
विस्मय – आँय, राम-राम, ए ददा, ए दाई, अरे, हे
आँय, का होगे ?
राम-राम, अइसन बखानत हे नहीं।
ए दाई ऽ ऽ अतका कन पई ऽ सा ऽ।
घृणा – दुर-दुर, छी, छि-छि, थू. हत, दुर-दुर एला दूरिहा राख। छि-छि, ओ टूरा ह पीथे तहाँ निचट बकथे। थू , कइसन बस्सावत हे।
हर्ष / प्रशंसा – वा, बने, धन-धन, सुग्घर, वा, बने करे बेटा। कत्तेक सुग्घर हे ओकर बहुरिया हा। धन-धन मोर भाग, मोर घर बेटी होगे।
पीड़ा – हाय, हा दाई /ददा, दाई वो, ददा गा, हा दाई ऽ मर गेंव वो ऽ। ददा गा , मैं नई तइसे लागथे अब्बड़ पीरावत हे।

शोधार्थी – राजेन्‍द्र कुमार काले, रायपुर. निदेशक – चित्‍तरंजन कर

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